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+2 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी *
वागव्यतर वा० वाण व्यंतरी जे. जो अ० अन्य त० तैसे स० सब ए. ये त. उस की भक्तिवाले जा०है यावत् चि० रहते हैं ॥ १६ ॥ ज० जम्बद्वीप के मं. मेरु की दा. दक्षिण में जा० जो इ० ये स० उत्पन्न होते हैं तं. वह ज० जैसे अ० लोहे की खान त० चांदीकी खान तं० तांबेकी खान एक ऐसे सी० सीसे की खान दि० चांदीकी खान सु० सुवर्ण की खान र० रत्नकी खान व० वज्र रत्न की खान व० द्रव्य वृष्टि हि० चांदी सु० सुवर्ण की वर्षा र० रत्न व० वन आ० आभरण प० पत्र पु० पुष्प फ० फल बी० बीज म० माला व० वर्ण चु० चूर्ण ग. गंध व. वस्त्र की वा० वर्षा हि हिरण्य की बु. वृष्टि सु० सुवर्ण
दीवकुमारीओ; दिसाकमारा, दिसाकमारीओ, वाणमंतरा, वाणमंतरीओ, जेयावण्णे तहप्पगारा सव्वेते तब्भत्तिया जाव धिटुंति ॥१६॥ जंबुद्दीवेदीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाइं समुप्पजति. तंजहा-अयागराइवा, तउयागराइवा, तंबागरांइवा, एवं सीसागराइवा, हिरण्ण सुवण्ण रयण वइरागराइवा, वसुहाराइवा, हिरण्णवासाइवा, मुवण्णवासाइवा, रयण-वइर-आभरण-पत्त-पुप्फ-फल-बीय-मल्ल-वण्ण-चुण्ण-गंध-वत्थआज्ञा, निर्देश व उपपात में रहते हैं उन की सेवा भक्ति करते हैं यावत् उनका भार्या समान कार्य करते हैं। ॥ १६ ॥ जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत की दक्षिण में लोहे की खान, ताम्बे की खान, सीसे की खान, हिरण्य [चांदी] की खान, सुवर्ण की खान, रस्न, वज्र, आभरण, पत्र, पुष्प, फल, बीज, माल्य, वर्ण, चूर्ण,
काशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
Tamannaanawaranan
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