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शब्दार्थ *के. वल्मु ना० नाम का म० महाविमान गो० गौतम त० उस सो० सौधर्मावतंसक म० महाविमान की उ०141
उत्तर में ज० जैसे सो० सोम वि० विमान की रा राज्यधानी की ब० वक्तव्यता ने० जानना जा० यात वा० प्रासादावतंसक ॥ १५॥ स० शक्र के वे० वैश्रमण को इ० ये दे० देव आ० आज्ञा उ० उपपात व० पचन नि० निर्देश में चि० रहते हैं वे० वैश्रमण कायिक वे वैश्रमण देव कायिक सु० सुवर्ण कुमार सु० सुवर्ण कुमारिका दी० द्वीपकुमार दी. द्वीप कुमारी का दि० दिशाकुमार दि० दिशा कुमारी का वा०
महाविमाणे पं० ? गोयमा ! तस्सणं सोहम्मवडंसयस्स महाविमाणस्स उत्तरेणं जहा सोमस्स विमाणस्स रायहाणियवत्तव्वया तहा नेयव्वा जाव पासायवडंसया ॥१५॥ सकस्सणं वेसमणस्स इमे देवा आणाउववायवयणनिदेसे चिटुंति, तंजहा-वेसमण
काइयाइवा, वेसमणदेवकाइयाइवा, सुवण्णकुमारा, सुवण्णकुमारीओ, दीवकुमारा, मण पहाराजा का वल्गु नामक महा विमान कहां है ? अहो गौतम ! सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक A
महाविमान की उत्तर में असंख्यात योजन जावे वहां वल्गु नाम का महा विमान आता है. ॐ सब वर्णन सोम महाराजा की राज्यधानी जैसे कहना ॥ १५ ॥ वैश्रमण कायिक, वैश्रमण देवकायिक, 13 सुवर्ण कुमार, द्वीप कुमार, दिशा कुमार व वाणय्यंतर देव व उन की देवियों वैश्रमण महाराजा की
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 388
43800-80 तीसरा शतकका सातवा उद्देशा 48488
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