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________________ ५७८ 42 अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी 812 यावत् से. उन व• वरुण के. जा. यावत् अ० यथा अपत्य क० कर्कोटक क० कर्दम अं• अंजन सं०. शंखपाल पुं० पुंडू ५० पलाश मो० मोज ज. जय द० दधिमुख अ० अयंपुल का० कातरिक व० वरुण की दे० देशऊणे दो• दोपल्योपम की ठि० स्थिति अ० अपत्य देव की ए० एक पल्योपम की म० महर्द्धिक ५० कहे व० वरुण म० महाराजा ॥ १४ ॥ क० कहां भं० भगवन् स० शक्र के वे० वैश्रमण वरुणकाइयाणं देवाणं सक्कस्सणं वरुणस्स जाव अहावच्चाभिण्णाया होत्था, तंजहाकक्कोडए, कद्दमए, अंजणे, संखवालए, पुंडे, पलासे, मोये, जये, दहिमुहे, अयंपुले, कायरिए ॥ सक्कस्सणं वरुणस्स देसूणाइं दो पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, अहावच्चा भिण्णायाणं देवाणं एगंपलिओवमं ठिई पण्णत्ता, ए महिड्डीए जाव वरुणे महाराया ॥ १४ ॥ कहिणं भंते ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो वेसमणस्स महारण्णो वग्गूनामं महाराजा जानते हैं यावत् याद करते हैं. वरुण महाराजा को कर्कोटक, कर्दमक, अंजन, शंखपाल, all पुंड, पलाश, मोय,जय, दधिमुख, अयंपुल कातरिक नामक देवों पुत्रवत् विनयवाले आदेशमें प्रवर्तनेवाले होते हैं. इन की देशऊने दो पल्पोपम की स्थिति कही है, और अपत्य समान देवकी एक पल्योपम की स्थिति कही. अहो गौतम ! वरुण राजा की ऐसी ऋद्धि कही है ॥ १४ ॥ अहो भगवन् ! शक्र देवेन्द्र का वैश्र * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदव सहायजी चालापसादजी* भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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