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________________ शब्दार्थ पंचमान विवाह पणचि (भगवता) सूत्र 4280 अनार्य ॥ १० ॥ इ. ये दे० देव अ० यथा अपत्य अ० जाने हो थे अं• अंब अंबरिष सा. श्याम स. सबल का रुद्र वे० वैरुद्र का काल म० महाकाल अ. असिपत्र ध० धनुष्य कुं. कुंभ बा. वालुक वे. वैतरणी ख० खर स्वर म. महाघोप प. पन्नरह आ० कहे ज० यम म. महाराजा की स० तीन भाग ५. पल्योपम की ठि• स्थिति अ० यथाअपस की ए. एक प० फ्ल्योपम की म० महर्द्धिक जा० यावत् ण्णे तहप्पगारा न ते सक्कस्स देविंदरस देवरण्णो जमस्स महारणो अण्णाया ॥१०॥ तेसिंवा जमकाइयाणं देवाणं सक्कस्स जमस्स इमेदेवा अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तंजहा-अबे, अंबरिसे चेव; सामे, सबलत्तियावरे ; रुदे, वरुद्दे, कालेथ ; महाकाले त्तियावरे (1) असिपत्ते, धणकुंभे वालुया; वेयरणीतिय; खरस्सरे, महाघोसे, एमेपण्णर साहिया। सक्कस्सणं देविस्स देवरगणो जम्मस्स महारणो सति भागं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता । अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं एग पलिओवमं ठिई पन्नत्ता । ए माहड्डीए जाव गुप्त नहीं होती है इन को जानते हैं, देखते हैं, व स्मरण करते हैं ॥ १० ॥ अम्ब, अम्बरिश, साम, सबल, रुद्र, वैरुद्र, काल, महाकाल, असिपत्र, धनुष्य, कुंभ, वालुक, वैतरणी, खरस्वर और महायोप ये पंदरह। परमाधर्मा यम महाराजा को अपत्यवत् विनयवंत रहते हैं. यम महाराजा की एक पल्योपम और एक पल्यापम के तीसरे भाग अधिक की स्थिति कही है. उन के पुत्र स्थान कार्य करनेवाले देव की एक 48488 तीसरा शतक का स तवा उद्देशा 8-800 भावार्थ 1
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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