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शब्दार्थ मो० सोम महाराजा ॥ ७॥ क. कहां ज० जप म. महाराजा का व घरशिष्ठ म. महाविमान प.
प्ररूपा गो. गौतम सो सौधर्म अवतंसक म. महाविमान की दा दक्षिण में सो० सौधर्म देवलोक की 100
अ० असंख्यात जो० योजन वी० व्यतिक्रान्त हवे ए० तहां सशक्र के जयमका ववरशिष्ठ वि० विमान । F५० प्ररूपा अ० अर्ध ते० नेरह जो० योजन स० लाख ज. जैसे सो० सोम का वि० विमान त० तैसे ॐ
एगं पलिओवमाठिई पण्णत्ता. ए महिढाए जाव ए महाणुभागे सोमे महाराया ॥ ७ ॥ कहिणं भंते सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो वरसिडेणामं महाविमाणे । पण्णत्ते ? गोयमा ! सोहम्मवडंसयस्स महाविमाणस्स दाहिणेणं सोहम्मे कप्पे असंखेजाइ जीयण सहस्साई वीईवइत्ता एत्थणं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स
महारण्णो वरसिटेनामं विमाणे पण्णत्ते. अडतेरस्स जोयण सयसहस्साई जहा सोमस्स भावार्थ
पूर्व दिशा के लोकपाल सोम की यह ऋद्धि और यह विवक्षा की है ॥ ७ अहो भगवनू ! शक्र देवेन्द्र | के यम महाराजा का वरशिष्ठ नामक महा विमान कहां कहा है ? अहो गौतम ! सौधर्म देवलोक में ।
सौधर्मावतंसक नामक महा विमान से दक्षिण में असंख्यात योजन नावे तब वहां यम महाराजा का 177वरशिष्ट नामक विमान कहा है. वह साढे बारह योजन का लम्बा चौडा वगैरह सोम महाराजा का
4818 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
** तीसरा शतकका सातवा उद्दशा
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