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शब्दार्थ यावत् उ० चौकी पीठ सो० सोलह जो० यो नम स. सहस्र भा० लंबे वि० चौडे प.31
पञ्चास स०सहस्र योजन पं० पांच स• सत्तानव जो० योजन स० शत किं. किंचित् वि. विशेषकमा प. परिधि पा. प्रासाद की च० चार प० परिपाटी ने० जानना से० शेष न० नहीं है ॥४॥ स० शक्र : दे देवेन्द्र के सो० सोम म० महाराजा के इ० ये दे. देव आ० आज्ञा उ० उपपात व० वचन नि निर्देश में चि० रहे सो• सोमनिकाय पो० सोमदेव निकाय वि. विद्युत्कुमार वि. विद्युत्कुमारी अ. अग्निकुमार
प्पमाणा बेमाणियाणं पमाणस्स अई नेयत्वं जाव उवगारियलेणं सोलस जोयण सहस्साई आयाम विक्खंभेणं पण्णासं जोयण सहस्साई पंचय सताणउए जोयणसए किं चिविसेसणे परिक्खेवेणंप पासायाणंचत्तारि परिवाडीओनेयवाओ सेसानत्थिासकरसणं देविंदस्स देवरण्णोसोमरस महारण्णो इमे देवा आणाउववाय वयण निदेसे चिटुंति तंजहा
सोमकाइबाइवा, सोमदेवयकाइयाइवा, विज्जुकुमारा, विज्जुकुमारीओ, अग्गिकुमारा, भावार्थ विमान ६२॥ योजन के हैं और परिवारवाले ६४ विमान ३१॥ योजन के हैं. यावत् वे सोलह हजार
योनन के लम्बे चौडे कहे हैं ५०५१७ योजन से कुछ अधिक की परिधि कही है. इस में सौधर्म सभा,
उत्पत्ति स्थान, व्यवसाय सभा वगैरह नहीं है ॥ ४॥ शक्र देवेन्द्र के सोम महाराजा की आज्ञा, उपपात 19व निर्देश में सोम महाराजा की जाति के देव, सोम देव की जाति के देव, विद्युत् कुनार, अग्नि कुमार व *।
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
*प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* .