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शब्दार्थ है प पा जैसे भवः विमान की व
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सूत्र
भावार्थ
ॐ पंचमांग विवाह पणचि ( भगवती सूत्र
कहना
का विविध जा० यान अभिषेक न० विशेष मोसोमदेव || ३ || = संध्यप्रभ म महाविमान की अ नीचे स० दिशा म विदिशा में अ असंख्यात जो योजन लाख भगाकर मः शक देव देवेन्द्र का सोमव महाराजा की मोमोमा रा० राज्यवानी एक जो योजन म लाख आर लंबी वि० पौडी नं संबद्रीप प्रमाण वे वैमानिक के प्रमाण मे अ अर्थ न जानना जा जहेब सुरियास विमाणस्स वत्तच्या सा अपरिसंसा भाणियव्वा जाव अभियो । नवरं सोमं देवे ॥ ३ ॥ संझप्पभसणं महाविमाणस्स अहे सपक्व पडिदिसिं असंखजाई जोयण सय सहरसाई उगाहित्ता एत्थणं सवरस देविंदस्म देवरण्णो सोमरसमहारण्णी सोमानामं रायहाणी पण्णत्ता, एवं जोयणसयसहस्से आयामविक्खभेणं जंबूदीव (सूर्याभ देवता के विमान का अधिकार में जैसा कहा है वैसे ही कहना मात्र यहां सोम देव कहना ॥ ३ ॥ इस संध्यप्रभ विमान से असंख्यात योजन नीचे अवगाहकर चारों विदिशि में जाये तो वहां शक्र देवेंद्र के सोम महाराजा की सोमा नामक राज्यधानी कही हैं. एक लक्ष योजन की लम्बी व चौडी है. इस में प्रासाद द्वारादिक के सब प्रमाण सौधर्म देवलोक के प्रासादिक से आया है. अर्थात् १५० योजन का कोट है, १२५० योजन का मासाद ऊंचा है, चारों तरफ चार प्रासाद १२० योजन के हैं, इस के परिवारवाले १६ ।
नीमग शतक का सातवा उद्देशा