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शब्दार्थ तसक म० महाविमान की पुः पूर्व में सो. सौधर्म देवलोक में अ० असंख्यात योजन वी. अतिक्रमकर
ए• तहां स० शक्र दे० देवेन्द्र का सो० सोम म महाराजा का मं० संध्यप्रभ म. महाविमान अ० अर्ध ते तेरह जो० योजन स० लाख आ० लंबा वि० चौडा उ० गुनचालीस जो० योजन ल० लाख बा० बावन स० सहस्र अ० आठ अ० उडतालीम जो० योजन स० शत किं० किंचित् वि. विशेषाधिक ___ महाविमाणस्स पुरच्छिमेणं सोहम्मकप्पे असंखेज्जाई जोयणाई वीईवइत्ता एत्थणं
सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो संझप्पभेनामं महाविमाणे प० अद्धतेरस जोयण सय सहस्साई आयाम धिक्खंभेणं उयालीसं जोयणसयसहस्साई बाव- 6
ण्णचसहस्साई अट्ट अडयाले जोयणसए किंचित्रिसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥ भावार्थ योजन का लम्बा चौडा व असंख्यात योजन की परिधि वाला है. उस में बशीस लाख विमान हैं वे सब
रत्नपय निर्मल यावत् दर्शनीय हैं. उस के बहुत मध्य भाग में सब विमानों में मुकुट समान श्रेष्ट पांच महा। विमान हैं. जिन के नाम. १ अशोकावतंसक २ सप्तपर्णावतंसक ३ चम्पकावतंसक ४ चूतावतंसक
और ५ मध्य में सौधर्मावतंसक विमान हैं. उस सौधर्मावतंसक विपान से पूर्व में असंख्यात योजन जावे तो
वहां शक्र देवेंद्र का सोम नामक लोकपाल का स्वयंप्रभ नामक विमान कहा है. वह. साढेवारह लाख योजन 10 का लम्बा चौडा है. उस की परिधि ३१५२८४८ योजन से कुछ अधिक की है. इस का सब वर्णन
अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
मकाशक-राजाबहादर लाला मुखदेवसहायजीपालाप्रसादजी