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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
क० कहां मं० भगवन् स शक्र दे० देवेन्द्र के सो० सोम म० महाराजा का सं० संध्यrभ म० महाविमान (गो० गौतम जं० जंबूद्वीप के मं० मेरु पर्वत की दा दक्षिण में इ० इस र० रत्नप्रभा पु० पृथ्वी के ब० बहुत स० समरमणीय भूमिभाग से उ० ऊर्ध्व चं० चंद्र सू० सूर्य ग० ग्रह ग० समुह न० नक्षत्र ता० तारे ब० बहुत जो० योजन जा० यावत् पं० पांच अ० अवतंसक अ० अशोक अवतंसक स०सप्तपर्ण अवतंसक) चं० चंपक अवतंसक चू० च्युत अवतंसक म० मध्य में सो० मौधर्म अवतंसक त० उस सो० सौधर्म अत्रकहिणं भंते ! सक्करस देविंदरस देवरण्णो सोमस्स महारण्णो संझप्प णामं महाविमाणे प० ? गोयमा ! जंबूदीवेदीचे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ उट्टं चंदिमसूरिमगहगणनक्खत्ततारा रुघाणं बहूई जोयणाई जाव पंच वर्डसया प० तंजहा - असोयवडंसए, सत्तिरण वर्ड.सए, चंपयवडंसए, चूयवडंसए, मज्झे सोहम्म वर्डसए ॥ तस्सणं सोहम्म वर्डसस्स का सोम नामक लोकपाल का संध्यप्रभ नामक विमान किस स्थान पर है ? अहो गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत की दक्षिण दिशामें रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुत मध्य भाग से बहुत योजन ऊंबे चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र व तारे रहे हुवे हैं. वहां से सो, हजार, क्रोड व क्रोड क्रोड योजन उपर ऊंचे सौधर्म देवलोक रहा हुवा है. वह पूर्व पश्चिम लम्बा व उत्तर दक्षिण चौडा, अर्धचंद्रमां के आकार वाला महातेजवाला देदीप्यमान असंख्यात
ॐ तीसरा शतकका सातत्रा उद्देशा
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