________________
शब्दार्थको क० कितने लो० लोकपाल गो० गौतन च. चार लोकपाल प० प्रो सो सोम ज. यम व० वरुण
७० वैश्रमण ॥ १ ॥ ए० इन भं भगवनू च० चार लो० लोकपाल के क० कितने विमान प० प्ररूपे ।
गो गौतमच. चार वि. विमान प० प्ररूपे सं० संध्यप्रभ व० वरशिष्ट स० स्वयंजल व वल
५६२
कइलोगपाला पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि लोगपाला पण्णत्ता तंजहा-सोमे, जने, वरुण, वेसमणे ॥ १ ॥ एएसिणं भंते ! चउण्हं लोगपालाणं कइविमाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि विमाणा ५० तंजहा-संझप्पभे, वरसिट्टे, सयंजले, वग्गू ॥ २ ॥
4. अनुवादक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक ऋषिजी १
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी यालाप्रसादजी*
भावार्थ
है छठे उद्देशे के अंत में आत्मरक्षक देव का वर्णन कहा. आगे उद्देशे में लोकपालोंका वर्णन कहते हैं. राजगृही नगरी के गुणशील नामक उद्यान में भगवंत पधारें परिषदा वंदन करने को आइ और धर्मोप देश सुनकर पाछी गई. उस समय में श्री गौतम स्वामी श्रमण भगवंत को वंदना नमस्कार कर ऐसा प्रश्न करनेलगे कि अहो भगवन् ! शक्र देवेंद्र को कितने लोकपाल कहे हैं ?अहो गौतम : शऋदेवेंद्र को चार लोक पाल कहे हैं. उन के नाम मोम, यम, वरुण और वैश्रमण. ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! उन चार लोकपालों
के कितने विमान कहे हैं अहो गौतम ! उन के चार विमान कहे हैं ? मोम का संध्यमभ २ यम का वरशि कष्ट ३ वरुण का स्वयंजल और ४ वैश्रमण का वल्गु ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! शक्रदेवेंद्र देवराजा ।