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________________ शब्दार्थ nirmanoranAAAAKAA पचंमांग विवाह पण्णति ( भगवती) सूत्र 4882 आ० आत्मरक्षक देव सा. सहस्र गो० गौतम च. चार च. चौसठ आ० आत्मरक्षक देव साल ए. इस आ० आत्म रक्षक का ब वर्णन स० सर्व इं० इन्द्रका ज. जिस को ज. जितने आ० अत्मरक्षक ईते. उतने भा० कहना ॥३॥६॥ = रा० राजगृह न० नगर में जा. यावत् प० पर्युपासना करते ए. ऐसा व० बोले स० शक्र दे० देवेन्द्र ॥ ७ ॥ चमरस्सणं भंते ! असुरिंदरस अमुररण्णो कइ आयरक्खदेवसाहस्सीओ ? __ गोयमा : चत्तारि चउसट्ठीओ आयरक्खदेव साहस्सीओ पण्णत्ताओ ॥ एएणं आय रक्खवण्णओ ॥ एवं सब्वेसिं इंदाणं जस्स जत्तिया आयरक्खा ते भाणियन्वा ॥ सेवं भंते भंतेत्ति जाव विहरइ ॥ तईय सए छट्ठो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ३ ॥ ६ ॥ * रायगिहे नयरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी सकस्सणं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो के रूप से भर देवे. यह मात्र विषय है. इतने रूप किसीने किये नहीं, करते नहीं व करेंगे नहीं ! ७ ॥ अहो भगवन् ! चमर नामक असुरेन्द्र को कितने हजार आत्मरक्षक रेंद्र को दो लाख छप्पन्न हजार आत्म रक्षक देव कहे हैं. ऐसे ही सब भुवनपति यावत् अच्युतेंद्र तक के 30 इभिन्न २ आत्म रक्षक देव जानना. अहो भगवन ! आप के वचन सत्य हैं ऐसा कहकर तप व मंयम से आत्मा को भावते हुवे श्री गौतम स्वामी विचरने लगे. यह तीसरा शतकका छडा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥३॥६॥ तीसरा शतकका सातका उद्देशा8880 भावार्थ 48
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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