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________________ SET ५५८ शब्दार्थ : ल० लब्धि से ओ० अवधि ज्ञान लब्धि से रा० राजगृह नगर में स० विकुर्वणा कर वा० वाणारसी न० नगरे समोहए समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाइं जाणामि पासामि, से से दंसणे अविवच्चा से भवइ से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ ॥ बीओवि आलावगो एवं चेव, णवरं वाणारसीए नयरीए समोहणा वेयव्वा ॥ रायगिहे नयरे रूवाइं जाणइ पासइ ॥ ४ ॥ अणगारेणं भंते भावियप्पा अमायी सम्मदिट्ठी बीरिय लडीए वेउव्विय ललडीए ओहिनाणलडीए रायगिहं वाणारसिं नगरिंच अंतरा एग महं जणवयवगं समोहए समोहएत्ता रायागहं नगरं वाणारसिं च नगरिं तंच अंतरा एगं महं जणवयव ग्गं जाणइ पासइ ? हंता जाणइ पासइ ॥ से भंते ! किं तहाभावं जाणइ पासइ 'भावार्थ तरह उन को दर्शन के समपने से मति की विपरीतता नहीं होती है इसलिये अहो गौतम ! वे यथातथ्य भाव जाने देख परंतु अन्यथा भाव जाने व देखे नहीं. इसी तरह दमरा आलापक जानना. परंतु इस में राजगृही का वैकेय करके बाणारसी में मनुष्यादि के रूप देखने के स्थान वाणारसी का वैकेय करके राज में मनुष्यादिक के रूप देखे ॥ ४ ।। अमायी सम्यग् दृष्टि भावितात्मा अनगार वीर्य लब्धि, वैक्रेय लब्धि, व अबधि ज्ञान की लब्धि से राजगृह नगर व बाणारसी के मध्य का एक बड़ा जनपद देश की विकुर्वणा करके उन दोनों की बीच का जनपद को क्या जाने व देखे ? हां गौतम ! वे जाने देख. अहो भगवन् ! ऋषिजी अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी चालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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