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शब्दार्थ
सूत्र
बाभार्थ
- पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगत) सूत्र
वालब्धि से वि० वैक्रेय लब्धिसे वि० विभंगज्ञान लब्धिले बा० वाणारसी नगरी रा० राजगृह न० नगर की अं० बीच में ए० एक म० वडा ज० देशसमुह स० विकुर्वणा कर वा० वाणारसी नगरी रा० राजगृह न० नगर की अं०बीच में ए० एक मव्वडा ज०देश समुह जा० जाने पा० देखे हं०हां जा० जाने पा० देखे त मिच्छदिट्ठी वीरिय लडीए विउव्जियलद्धीए विभंग णाणलडीए बाणारसिं नगरिं रायगिहंच नगरं अंतराय एवं महं जणवयवग्गं समोहए समोहएत्ता वाणारासें नगरिं रायगिहं तंच अंतरा एगं महं जणवयवग्गं जाणइ पासइ ? हंता जाणइ पासइ । से भंते! किं तहाभावं जाणइ पासइ, अण्णहाभाव जाणइ पासइ ? गोयमा ! णो तहाभावं बनाया और राजगृही में मनुष्यादि के रूप जान व देख सकता हूँ. इस तरह दृष्टि की विपरीतता से मति की विपरीतता होती है. इस से वह यथार्थ भाव नहीं जान सकता है व देख सकता है परंतु अन्यथा भाव जान सकता है व देख सकता है || २ || अहो भगवन् ! मायी, मिध्यादृष्टि भावितात्मा अनगार वीर्य लब्धि, वैक्रेय लब्धि व विभंग ज्ञान लब्धि से राजगृही व बाणारसी नगरी के बीच में एक वडाजनपद की विकुर्वणा करके क्या इन दोनों नगरी के बीच के जनपद को जान व देख सकता है ? हां गौतम ! ऐसा मायावी मिथ्यादृष्टि भावितात्मा अनगार जान व देख सकता है. अहो भगवन् ! क्या वह तथा भाव जाने या अन्यथा भाव जाने ! अहो गौतम ! वह तथा भाव जाने परंतु अन्यथा भाव जाने नहीं.
4248 तीसरा शतकका छठ्ठा उदेशा
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