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________________ शब्दार्थ अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी है रूप जा० जानता हूं पा. देखता हूं से उस से उप्त दं०दर्शन में वि० विपरीतता भ होवे ते०इस लिये जा. यावत् पा० देखे ॥ १ ॥ पूर्ववत् ॥ २ ॥ अ० अणगार भं० भगवनू मा० मायी मि० मिथ्यादृष्टि वी० णित्ता वाणारसीए नयरीए रूवाइं जाणामि पासामि, से से दसणे विवच्चासे भवइ, से है। तेणटेणं जाव पासइ ॥१॥अणगारेणंभंते ! भावियप्पामायी मिच्छादिट्रीजाव रायगिहे नयरे । समोहए समोहएत्ता वाणारसीए नयरीए रूवाइं जाणइ पासइ ? हंता जाणइ पासइ । म तंचेव जाव तस्सणं एवं भवइ एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए समोहए समोहणिचा रायगिहे नयरे रूवाई जाणामि पासामि । से से दंसणे विवच्चासे भवइ से तेणटेणं जाव अण्णहाभावं जाणइ पासइ ॥ २ ॥ अणगारेणं भंते ! भावियप्पा मायी किसी दिशी मूढ पुरुष पूर्वादि दिशा नहीं जानसकता है। वैसे ही वह भी नहीं जान सकता है. इसलिये अहो गौतम : वैसा अनगार यथातथ्य भाव नहीं, जानसकता है परंतु अन्यथा भाव जान सकता है। ॥2॥ अहो भगवन् ! मायी मिथ्या दृष्टि भावितात्मा अनगार वीर्यलब्धि, वैक्रेय लब्धि व विभंग ज्ञान लब्धि से राजगृह नगर का वैक्रेय करके क्या वाणारसी में मनुष्यादि के रूप जान व देख सकता है ! हां गौतम ! वह राजगृहीकी विणा करके बाणारसीमें मनुष्यादिक के रूप जान व देख सकता है वगैरह सब अधिकार पहिले जैसे कहना. और उसे भी ऐसा विचार होवे कि मैंने बाणारसी का रूप प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* भावार्थ wwwwwwwwwwwwwwwwww
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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