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________________ शब्दार्थ | सूत्र भावार्थ * पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवता ) सूत्र ? हां प० समर्थ से वह मं० भगवन् किं० क्या आ० आत्म ऋद्धि से प० दूसरे की ऋद्धि से ग० जावे माईणं भंते ! तस्सठाणस्स अणालोइय पडिकंते कालं करेइ कहिं उववज्जइ गोयमा ! अण्णयरेसु अभियोगेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववज्जइ अमाईणं तस्स ठाणस्स आलोइय पंडिते कालं करेइ कहिं उववज्जइ, गोयमा ! अण्णयरेसु अणाभियोगिएसु देवलोएस देवत्ताए उववज्जइ सेवंभंते भंतेत्ति ॥ गाहा - इत्थी, असी, या अन्य की ऋद्धि से जाता है ? अहो गौतम ! आत्म ऋद्धि से जाता है परंतु अन्य की - ऋद्धि से नहीं जाता है. आत्म कर्म से जाता है परंतु अन्य के कर्म से नहीं जाता है, आत्म प्रयोग से जाता है परंतु अन्य के { प्रयोग से नहीं जाता है, ऊर्ध पताका के आकार से जाता है परंतु अधो पताका के आकार से नहीं जाता है. अहो भगवन् ! क्या वह अनगार अश्व कहाता ? अहो गौतम ! अनगार अश्व नहीं कहाता है परंतु अगार कहता है. ऐसे ही अष्टापद तक जानना. अहो भगवन् ! उक्त प्रकार के रूप क्या मायावी बनाते हैं या अमायावी - अप्रमादी बनाते हैं ? अहो गौतम! बैते रूप मायावी साधु बनाते हैं परंतु अमायावी नहीं बनाते हैं वगैरह सच चौथे उद्देशे जैसे जानना. अहो भगवन्! मयावी उसकी आलोचना प्रतिक्रमण वगैरह किये विना वहांपर काल कर ( जावं तो कहां जावे ? अहो गौतम ! वैसे प्रथम देवलोक से बारहवे देवलोक तक में इन्द्रादि देवों के कपने उत्पन्न होते हैं अहो भगवन् ! अमायावी आलोचना प्रतिक्रमण वगैरह करके कहां उत्पन्न होवे ? थहो गोतम ! वे सेवकपने नहीं उत्पन्न होते हैं परंतु सामानिक देव व अहमेंद्र देवपने सर्वार्थ सिद्ध विमान तक 4084848 तीसरा शतक का पांचवा उद्देश ५५१
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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