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शब्दार्थ घडा आ० अश्वप ह० हस्ति सी० सिंहरूप व व्याघ्र व चित्ता दी० दीपडा अ० छ । तरख प० ।
अष्टापद अ० वैक्रेय करने को णो नहीं इ. यह अर्थ स० समर्थ ॥६॥ अ० अगार भं० भगवन् भा० भावितात्मा ए० एक म० बडा आ० अश्वरूप अ० वैक्रेयकर अ० अनेक जो. योनन ग. जाने को हं०
रूवंवा अभिजंजित्तए ? णो इणट्टे समटे ॥ अणगारेणं एवं बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू ॥ ६ ॥ अणगारेणं भंते ! भाविअप्पा एगं महं आसरूवंवा अभिउंजित्ता अणेगाइं जोयणाई गमित्तए ? हंता पभू । से भंते ! कि आयड्डीए गच्छइ परिड्डीए गच्छइ ? गोयमा ! आयबीए गच्छइ णो परिड्डीए एवं आयकम्मुणा परकम्मण्णा, आयप्पयोगेणं परप्पयोगेणं, उस्सिओदयंवा गच्छइ, पयोदयंवा गच्छइ । सेणं भंते ! किं अणगारे आसे ? गोयमा: अणगारेणंसे नो खलु से आसे एवंजाव परासरस्वं वासेभंत
किं माई विकुन्वइ, अमाई विकुम्वइ ? गोयमा ! मायी विकुन्वइ, नो अमायीविकुन्बइ। भावार्थ रूप,दीवडीका रूप, रीछ का रूप,तरखका रूप, अष्टापदका रूप और अन्य भी ऐसे रूप क्या बना सकते हैं ?
अहो गौतम : यह अर्थ योग्य नहीं है,अर्थात् बाहिर के पुद्गल ग्रहण किये विना वैसे रूप नहीं बना सकते हैं. 1 परंतु बाहिर के पुद्गल ग्रहण कर ऐसे रूप बनासकते हैं ॥ ६ ॥ अहो भगवन् ! भावितात्मा
अनगार एक षडा अश्वका रूप बनाकर अनेक योजन तक जाने को क्या समर्थ है ? हां गौनम ! 15 अश्वका रूप बनाकर अनेक योजन तक जाने को समर्थ है. अहो भगवन् ! क्या वह आत्म ऋदि से जाता
ऋषिजी + ११ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक शर्मा
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *