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शब्दार्थ
48 अनुवादक-यालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पताका जैसे ह० हस्त में लेकर अ० स्वतः से उ० ऊर्य वे० आकाश में उ० ऊडे अ० अनगार भा० भावितात्मा ए० एकदिशा में ज० यज्ञोपवित कि० लेकर अ० स्वतः से उ० ऊर्ध्व वे० आकाश में उ०
णगारे भाविअप्पा एगओ पडागाहत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं उढेवेहासं उप्पएज्जा ? हंता गोयमा ! अणगारेणं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू एगओ पडागा हत्थकिच्चगयाई रुवाई विउवित्तए, एवं जाव विकुर्दिवसुवा ३ । एवं दुहओ पडागंपि । से जहानामए केइपुरिसे एगओ जणोवइ काउं गच्छेज्जा, एवामेव अणगारेवि भावियप्पा एगओ जनोवइयं किच्चगएणं अप्पाणेण उर्दू वेहासं उप्पाएज्जा? हंता उप्पाएजा । अणगारेणं भंते ! भाविअप्पा केवइयाई पभ एगओ जणोवइयं किच्च
गयाइं रूवाइं विउवित्तए तं चेव जाव विकुब्बिसुवा ३, । एवं दुहओ जणोवइयंपि जैसे कोई पुरुष एकदिशी में पताका करके जावे वैसे ही कोई भावितात्मा अनगार वैक्रेय रूप से एकदिशा में की पताका हस्त में रखकर क्या जाने को समर्थ है ? हां गौतम ! वह जासकते हैं वगैरह सब पहिले जैसे कहना. ऐसे ही दो पताका का अधिकार जानना. अहो भगवन् ! जैसे कोई एक तरफ यज्ञोपवित धारन कर जावे वैसे ही क्या भावितात्मा साधु एकदिशा की उपवित का रूप धारन कर आकाश में जावे ? हां न गौतम : जासकते है अहो भगवन् ! ऐसे कितने रूप बना सकते हैं! अहो गौतम ! जैसे म्यान का अधि
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालवतादजी *
भावार्थ