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शब्दार्थ 19 मेले के कोई पुरुष अ० खङ्ग च० चर्मका पा० पात्र ग• ग्रहण कर ग जावे ए० ऐसे अ० अनगार भा०
भावितात्मा अ० म्यान पा० पात्र ह. हस्त में लेकर अ० आत्मा से उ० अर्ध्व वे० आकाश में उ० जावे हं० हां उ० जावे ॥ ३ ॥ अ० अनगार भ० भगवन् भा० भावितात्मा ए० एकदिशि में ५०
रिसे असिचम्मपायं गहाय गच्छेज्जा एवामेव अणगारेवि भावियप्पा असिचम्मपायं हत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं उर्दू वेहासं उप्पएजा ? हंता उप्पइजा । अणगारेणं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू असिचम्महत्थकिच्चगयाई रूवाइं विउवित्तए ? गोयमा ! से जहा नामए जुवई जुवाणे हत्थेण हत्थे गेण्हेज्जा तं चेव जाव विउन्विं.
सुवा ३ ॥३॥ से जहा नामए केइपुरिसे एगओ पडागं काउं गच्छेज्जा एवामेव अ. भावार्थ खड्ग का म्यान हस्त में लेकर कोई पुरुष जावे वैसे ही क्या गगनगामिनी विद्या से भावितात्मा साधु खड्ग
चर्म पत्र [म्यान ] हस्त में लेकर आकाश में जावे ? हां गौतम ! वैसे आकाश में जावे. अहो भगवन् ! हस्त में म्यान होवे वैसे कितने रूप वह भावितात्मा अनगार बनावे ? अहो गौतम ! जैसे काम पडित युवान पुरुष युवती को अपने हस्त से पकडता है यावत् एक लक्ष योजन का जम्बूद्वीप भरे. यह मात्र वैक्रेय का विषय है परंतु इतना रूप किसीने किया नहीं, करते नहीं, और करेंगे नहीं ॥३॥ अहो भगवन !
4. पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 8-81
48048 तीसरा शतकका पांचवा उद्देशा 84.88