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शब्दाथ
४.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 45
की ना० नाभी अ. आरासे उ० युक्त सि. होवे एक ऐसे अ० अनगार भा० भावितात्मा वि० चक्रेय म. समुद्घात स० नीकाले जा. यावत् प० समर्थ गो० मौतम अ० अनगार भा० भावितात्मा के० संपूर्ण जं. जम्बुद्वीप को ब० बहत इ० स्त्रीरूप से आ० आकीर्ण वि. विकीर्ण जा. यावत् ए० यह गो० गौनम अ० अनगार भा० भावितात्मा का अ०यह ए०ऐसा वि० विषय वि० विषय मात्र बु. कहा नो.नहीं सं० संपत्ति वि० विकुर्वणा की ए. ऐसे ५० परिपाटी ने० जानना जा. यावत् सं० पालखीरूप ॥२॥ ज०
हत्यसि गेण्हेजा, चक्करसवा नाभी अरगाउत्ता सिया एवामेव अणगारेवि भावियप्पा विउव्विय समुग्घाएणं समोहणइ जाव पभूणं ? गोयमा ! अणगारेणं भावियप्पा केवलकप्पं जंबृद्दीवं दीवं बहूहिं इत्थिरूवेहिं आयन्नं वितिकिण्णं जाव एसणं गोयमा : अणगारस्स भावियप्पणो अयमेवारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए नोचेवणं संपत्तीए, वि.
कुव्सुिवा ३, एवं परिवाडीए नेयव्वं जाव संदमाणिया ॥ २ ॥ सेजहा नामए केइपुमें आरे को भीडते हैं वैसे ही लब्धिवंत साधु वैक्रेय समयात करके एक लक्ष योजनका जम्बूद्वीप स्त्रीके है रूप से भरने को समर्थ है. अहो गौतम ! भावितात्मा अनगार को वैक्रेय करने का यह विषय कहा है। परंतु इतने रूप किसीने गत काल में किये नहीं है, वर्तमान में नहीं करते हैं, और आगामिक में करेंगे नहीं. जैसे स्त्री रूप का कहा वैसे ही पुरुष वगैरह का अनुक्रम से पालखी तक का कहना ॥२॥ जैसे
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ