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________________ शब्दार्थ Pags पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र -१03808 एक म० बडा इ० स्त्रीरूप जा० यावत् सं• पालखी रूप वि. विकुर्वणा करने को गो• गौतम नो नहीं । इ. यह अर्थ स० समर्थ ॥ १ ॥ अ० अनगार भं० भगवन् भ० भावितात्मा के० कितना प. समर्थ वि० विकुणा करने को गोगौतम ज जैसे जुः यवतीको जु०युवान ह० हस्त से ह० हस्त में गे ग्रहण करे च०चक्र ।। वंधा जार संदामणियरूवं वा विकुवित्तए ? गोयमा ! णो इण? समटे । अणगारेणं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगं महं इत्थिरूवं वा जाव संदामणियरूवं वा विकुवित्तए ? हंता पभू ॥ १ ॥ अणगारेणं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू इत्थिरूवाई विउवित्तए ? गोयमा से जहानामए जुवई जुवाणे हत्थेणं अहो भगवन् ! भावितात्मा अनगार बाहिरके वैक्रेय पुद्गल ग्रहण किये विना क्या एक महा स्त्री का रूप यावत् पालखी का रूप बनाने को समर्थ है ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है अर्थात् वे वैसा वैकेय रूप नहीं बनासकते हैं. तब अहो भगवन् ! क्या वह वाहिर के वैक्रेय पुद्गल ग्रहण कर एक महा स्त्रीका रूप यावत् पालखी का रूप बनाने को ममर्थ है, हां गौतम! वह महा स्त्रीका रूए यावत् पालखी बनाने समर्थ है ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! भावितात्मा साधु स्त्री के कितने रूप बनासकते हैं ? अहो गौतम ! जैसे 26/ काम पीडित पुरुष अपने हस्त से स्त्री का हस्त मजबुत पकडता है अथवा जैसे गाड़ी के चक्र की नाभी है। तीसरा शतक का पांचवा उद्देशा-4220 भावाथ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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