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________________ शब्दार्थ भा० भोजन भो• भोगव कर णो० नहीं वा० वममकरे त० उन को ते. उस रू० रूक्ष पा. पानी भो० भोजन से • अस्थि अ०. अस्थिमिंज प० पतली भ० होती है ॥ ३ ॥ ४ ॥ अ. अनगार मं० भगवन् भा० भावितात्मा वा वाह्य पो० पुद्गल अ० विना ग्रहण किये ५० ममर्थ ए. अगालोइय पडिकते कालं करेइ, नत्थितस्स आराहणा अमाईणं तस्स ठाणस्स. आले.इप पडिकंते कालं करेइ अत्थि तस्स आराहणा ॥ सेवं भंते भंतेत्ति तईयसए चउल्थो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ३ ॥ ४॥ x x . + अणगारेणं भंते ! भावियअप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगं महं इत्थिरूपरिणमते हैं इस तरह शक्ति कम होने से अमायीं वैक्रेयादि लब्धि नहीं करते हैं. अब मायी और अमायी को फल बताते हैं. मायावी प्रमादी वैक्रेय करनेमें लब्धि फोडने से अथवा सरस आहारादि के दोष लगने से आलोचना प्रतिक्रमण कर नहीं तो वह जिनाज्ञा का आराधक नहीं होसकता है. और जो अमायी अप्रमादी होसे हैं वे निर्दो। आहार भोगवने से व वैक्रेयादि नहीं करने से अल्प दोषी होते हैं. जो कुच्छ छद्मस्थपना से दोप लगता है उस की शुरु की समक्ष आलोचना करने से जिनाज्ञा का आराधक ल होता है. अहो भगवन् ! आपके वचन तथ्य हैं. आप जैसे कहते हैं वैसे ही हैं. यह तीसरा शतकका चौथा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ३ ॥ ४॥ री मुनि श्री अमोलक ऋषिजी अनुवादक-बालब्रह्मचारी * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्याला प्रसादजी * भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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