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शब्दार्थ4140 समर्थ ॥१३॥से वह भं. भगवन किं. क्या मा० मायी वि. विकुर्वणा करे अ. अमायी वि०
विकुर्वणा करे गो० गौतम मा० मायी वि. विकुर्वणा करे नो० नहीं अ० अमायी वि. विकुनैणा करे से वह के० कैसे गो० गौतम मा० मायी प० स्निग्ध पा. पानी भो० भोजन भो. भोगवकर वा० से वमनकरे त. उन को ते. उस प. स्निग्ध पा० पानी भो० भोजन से अ० अस्थि अ० अस्थिमिज व. पुष्ट
ता पभू ॥ १३ ॥ से भंते ! किं माई विकुव्वइ अमाई विकुव्वइ ? गोयमा ! माई विकुम्वइ, णो अमाई विकुब्वइ । से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ जाव नो अमाई विकुबई ? गोयमा ! माईणं पणीयं षाणभोयणं भोच्चा भोच्चा बामेइ, तस्सणं तेणं पणीएणं पाण भोयणेणं अट्ठि अट्ठिमिजा बहुली भवंति, पयणुए मंससोणिए
भवइ, जेवियसे अहाबायरा पोग्गला तेवियसे परिणमंति ॥ सोइंदियत्ताए जाव फाभावार्थ बाहिर के वैक्रेय पुद्गल ग्रहण कर राजगृही में रहेहुवे मनुष्य व पशु जितने रूप बनाफर बंभार पर्वत में प्रवेश
करके समकवि भूपि भार विषम की पम भूमि कर सकते हैं ॥ १३ ॥ अब वैकेय रूप कौन बनाने हैं सो कहते हैं. अहो भगवन् ! उक्त प्रकार के रूप क्या मायावी बनाते हैं या अमायी-माया कपट रहित पुरुष बनाते हैं ! अहो गौतम ! उक्त प्रकार के रूप मायी प्रमादी साधु करते हैं परंतु अमायी नहीं करते हैं. अहो भगवन् : किम कारन से मायी विकर्षणा करता है और अमायी नहीं करता है ?
१अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी ga
* प्रकाशक-राजाचहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रमादजी*