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________________ शब्दार्थ है उ० उल्लंघन करने को पं० विशेष उल्लंघन करने को गों. गौतम नो० नहीं इ० यह अर्थ म० समर्थ ॥१२॥ 100 अ० अनगार भं० भगवन् भा० भावितात्मा वा बाह्य पो• पुद्गल अ० विना ग्रहण कर ना० यावत् इ० % | इतने रा० राजगृह न० नगर में रू. रूप वि० विकुणा कर वे बेभार पर्वत की अं० अंदर अ० प्रवेश ५४१ कर प० समर्थ म० सम को वि० विषभ क० करों को वि० विषम को सः समक० करने को गो. गौतम नो० नहीं इ० यह अर्थ स समर्थ ए. ऐसे वि० दूसरा आ आलापक ण. विशेष प० ग्रहणकर उल्लंघेत्तएवा पलंघेत्तएवा ? हंता पभ ॥ १२ ॥ अणगारेणं भंते ! भावियप्पा बाहिरएपोग्गले अपरियाइला जाव इयाइं रायगिहे नयरे रूवाइं एवइयाई विउवित्ता वेभारं पव्वयं अंतो अणुप्पविसित्ता पभू समंवा विसमंवा करेत्तए विसमंवा समं करे त्तए ? गोयमा ! नो इणटे सम? ॥ एवं चेव बितीओवि आलावगो णवरं परियाइकर क्या वेभार पर्वत उल्लंघ सकते हैं?हां गौतम! वे भाविलात्मा अनगार बाहिर के पुद्गलग्रहण कर वेभार पर्वत का उल्लंघन कर सकते हैं ॥ १२ ॥ अहो भगवन् ! भावितात्मा लब्धिवंत साधु बाहिर के वैक्रेय पुद्गल 01 ग्रहण किये विना राजगृही नगरी में जितने मनुष्य पशु हैं उतने रूप बनाकर बेभार पर्वत में प्रवेश करse | | सम को विषम व विषम को सम करने क्या समर्थ है ? अहो गौतम !. यह अर्थ योग्य नहीं है अर्थात् लब्धिवन्त साधु बाहिर के वैक्रेय पुद्गल ग्रहण किये बिना उक्त कार्य करने को समर्थ नहीं होते हैं. परंतु पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र तीसरा शतक का चौथा उद्दशा - भाव -
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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