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शब्दार्थ
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी.
म. भव्य पु० पृच्छा गो० गौतम ज. जिस ले० लेश्या द० द्रव्य भाव से ५० ग्रहणकर का० काल करे: त उस ले० लेश्या में उ० उत्पन्न होवे ते • तेजो लेश्या ।। १० । पूर्ववत् ॥ ११ ॥ अ० अनगार भं० भगवन् भा० भावितात्मा बा० बाह्य पो० पुद्गल अविना ग्रहण करे प० समर्थ बे० बेभार प० पर्वत को
साइं दवाई परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेसेस उववजइ, तंजहा तेउ लेसंसुवा, पम्हलेसेसुवा, सुक्कलेसेसुवा ॥ १०-११ ॥ अणगारेणं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू बेभार पव्वयं उल्लंघेत्तएवा, पल्लंघेत्तएवा ? गोयमा ! णो
इण? समटे । अणगारेणं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभ वेभारपब्वयं उत्पन्न होते हैं. पद्म लेश्यावाले तीसरे, चौथे, पांचो देवलोक में, शुक्ल लेश्यावाले छठे देवलोक से सर्वार्थ सिद्ध तक में उत्पन्न होते हैं. अर्थात् वैमानिक देवों में तेजो, पम और शुक्ल लेश्याही है ॥ १०-११॥ शुभ लेश्यावाले साधु लब्धिवंत होते हैं इस मे लब्धि आश्री प्रश्न पुछते हैं. अहो भगवन् ! भावितात्मा अनगार बाहिर के वैक्रय शरीर के पदल ग्रहण किये विना राजगृही नगरी की पास का वेभार पर्वत क्या उल्लंघने को समर्थ होते हैं ! अहो गौतम वे बाहिर के वैक्रेय पुद्गल ग्रहण किये बिना वेभार पर्वत उल्लंघने को समर्थ नहीं होसकते हैं. अहो भगवन् ! भावितात्मा अनगार बाहिर के वैकेय पुद्गल ग्रहण
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवस हायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ