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शब्दार्थ के द० द्रव्य को ५० ग्रहणकर. का• काल करे त० उस लेश्या में उ• उत्पन्न होवे तं० वह ।
ज. जैसे क० कृष्ण लेश्या नी० नीललेश्या का० कापोत लेश्या ए० ऐमे ज० जिसको जा. जो लेश्या सा. वह भा० कहना जा. यावत् जी० जीव भं० भगान् जे. जो भ. ज्योतिषी में उ० उत्पन्न होने की।
यमा ! जं लेसाई दवाइं परियाइत्ता कालं करेइ, तल्लेसेसु उववज्जइ. तंजहा कण्हलेसे. सुवा, नीललेसेसुवा, काउलेसेसुवा, एवं जस्स जा लेसा सा तस्स भाणियव्वा, जाव जीवेणं भंते ! जे भविए जोइसिएसु उववाजित्तए पुच्छा ? गोयमा ! जल्लेसाई दवाई परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेसेसु उववजइ, तंजहा तेउलेस्सेसु । जीवेणं भंते ! जे
भविए वेमागिएसु उववजित्तए सेणं भंते ! किं लेरसेसु उववजइ ? गोयमा ! जल्लेभावार्थ होता है ? अहो गौतम ! जिस लेश्या के द्रव्य एकत्रित कर काल करता है उसी लेश्या में उत्पन्न होता
है. नरक में तीन लेश्या सहित जीव जाता है. कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या. यावत् कृष्ण, नील, कापोत और तेजोलेश्यावाले दश प्रकार के भवनपति में उत्पन्न होते हैं. इनही चार लेश्या- 60
वाले पृथ्वी. पानी व वनस्पति में उत्पन्न होते हैं. कृष्ण, नील और कापुतवाले तेउ वायु और विकलेन्द्रिय or में उत्पन्न होते हैं. कृष्ण, नील, कापोब, तेजो, पद्म, और शुक्ल लेश्यावाले मनुष्य तीर्यच में उत्पन्न होते हैं. 360
पहिली चार लेश्यावाले वाणव्यंतर में, मात्र एक नेनो लेश्यावाले ज्योतिषी और प्रथम द्वितीय देवलोक में है।
पंचमाङ्ग विवाह पण्णात (भगवती) सत्र 480
48 तीसरा शतक का चौथा उद्देशा
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