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शब्दाथ
सत्र
पंचमान विवाह पण्णत्ति (भगत) मूत्र 2.883
वा. वायुकाय प० पताका गो० गौतम वा. वायुकाय से वह नो० नही मा. वह प. पताका ॥८॥14 पं० समर्थ ब० मेघ ए. एक म० बडा इ० स्त्रीरूप जा. यावत् सं० स्थरूप प. परिणमाने को
से नो खलु सा पडागा ॥ ८ ॥ पभूणं भंते ! बलाहगे एगंमहं इत्थिरूवंवा जाव संदमाणियरूवंवा परिणामेत्तए ? हंता पभु ॥ १३ ॥ पभणं भंते ! वलाहए एगं महं इत्थिरूवं परिणामेत्ता अणेगाइं जोयणाई गमित्तए ? हता पभ । से भंते ! किं आयड्डीए गच्छइ परिड्डीए गच्छइ ? णो आयड्डीए गच्छइ, परिड्डीए गच्छइ. एवं णो आयकम्मुणा, परकम्मुण्णानो आयप्पओगेणं,परप्पओगेणं,ऊसितोदयंवा गच्छइ,पयोदयवां
गच्छइ, । से भंते किं बलाहए इत्थी ? गोयमा ! बलाहएणं से णो खलु सा इत्थी। एवं । उसे वायुकाया कहना परंतु पताका नहीं कहना. ॥ ८॥ अहो गोतम ! क्या मेघ एक बड़ा स्त्री का रूप यावत् शिविका का रूप परिणमाने में समर्थ है ? अथवा अनेक योजन तक जाने को समर्थ है ? हां भगवन् ! वह स्वी यावत् शिविकाकारूप बनाने का समर्थ है. वह क्या स्वतः की ऋद्धि से या अन्य का ऋद्धि से जासकते हैं ? अहो गौतम ! बह मेघ अजीव होने से स्वतः की शक्ति से नहीं जासकते हैं। परंतु अन्य की शक्ति मे जासकते हैं. वैसे ही स्वतः के कर्म से नहीं जासकते है परंतु अन्य के कर्मों से जा सकते हैं, स्वतः के प्रयोग से नहीं जासकते हैं परंतु अन्य के प्रयोग से जाते हैं. अहो भगवन !
तीसरा शतकका चौथा उद्देशा
वाभार्थ