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शब्दार्थ
जोडना ॥ ४ ॥ पूर्ववत् ॥ ५॥१० मार्थ भ० भगवन् वा० वायुकाय ए. एक म० बडा इ० स्त्रीरूप पुः। पु० पुरुषरूप ह. हस्तीरूप जाव्यानरूप जुघूतरा गि० अबाडी थि ऊंटकी पिल्लिका सी०शिक्षिका संरथरूप वि.विकुर्वणा करने को गो गौतम नो नहीं इ०यहअर्थ स०समर्थ वा वायुकाय वि०विकुर्वणा करते ए०एक
॥ ४ ॥ अणगारेणं भंते भावियप्पा रुक्खस्स किं फलं पासइ बीयं पासइ चउभंगो ॥ ५ ॥ * ॥ पभूणं भंते ! वाउकाएणं एगं महं इत्थिरूवंवा, पुरिसरूवंवा, हत्थि रूवंवा जाणरूपंवा, एवं जुग्ग गिल्लिथिल्लिसीयसंदमाणियरूवंवा विउवित्तए ?
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सूत्र
प्रचरिमुनि श्री अमोलक ऋषिजी "
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी मालाप्रसादजी *
भावार्थ
८ भांगे, स्कंध के ७, त्वचा के , शाखाके ५, प्रवालके ४, पत्रके ३, पुष्पके २ और फलका १यों सब मील कर ४५ चौभंगी होती हैं इस में से फल की ४५ वी चौभंगी बताते हैं. अहां भगवन् ! भावितात्मा अनगार क्या अवधि ज्ञान से फल को देख या बीज को देखे ? अहो गौतम ! कितनेक फल को देखे : परंतु बीज को देखे नहीं २ कितनेक बीज को देखे परंतु फल को देखे नहीं ३ कितनेक फल और बीज दोनों को देखे और ४ कितनेक फल और वीज दोनों को देख नहीं ॥५॥ अहो भगवन् ! क्या वायुकाय वक्रेय समुद्घात करके स्त्री का, पुरुषका, हस्ती का, विमान का, धुसरे का, हस्ती की अंबाडीका ऊंट की पिल्लिका का, शिबिका का, बैलगाडी इत्यादिकका रूप बनाने को समर्थ है ? अहो गौतम : यह अर्थ