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शब्दार्थच चारभांगे ए. ऐसे कि० क्या मृ० मूल को पा० देखे के० कंदको पा० देखे च० चार मांगे मृ० मूल
को पा० देखे वं. स्कन्ध को पा० देखे च० चारभांगे ए. ऐसे मू० मूल से वी० बीज को सं० जोडना १६० कंद से स० सम्यक् सं० जोडना जा० यावत् बी० बीज को ए. ऐसे पु० पुष्प से बी० बीज को सं016
कंदं पासइ चउभंगो, मलं पासइ खंधं पासइ चउभंगो, एवं मृलेणं बीजं संजोए
यव्वं एवं कंदणीव समं संजोएयव्वं जाव बीयं! एवं जाव पुष्फेण समं बीयं संजोएयव्वं । अहो भगवन् ! भावितात्मा अनगार अवधिज्ञानादि लब्धि ने क्या वृक्षको अंदरसे देखे या वाहिरसे ? अहो गोतम ! अबधि ज्ञान की विचित्रता से इसके चार भांगे होते हैं. १ कितनेक वृक्ष को अंदर से देखते हैं और बाहिर से नहीं देखते हैं कितनेक बाहिर से देखे परंतु अंदर से नहीं देखे ३ कितनेक अंदर से व
बाहिर से देखे और ४ कितनेक, अंदर से व बाहिर से नहीं देखे. ऐसे ही मूल और कंद के चार LE भांगे, मूल और स्कंध के चार भांगे, मूल और बीज के चार भांगे जानना. तैसे ही कंद और खंध,
कंद और बीज, ऐसे ही पुष्प और बीज का जानना. ॥ ४॥ १ मूल २ कन्द ३ स्कन्ध ४ स्वचा/ 4
शाखा प्रबाल ७ पत्र ८ पुष्प ९ फल और १० वीज. यह दश प्रकार की वनस्पति कही है. इन ०७ की द्विसंयोगी ४५ चौभंगी होती हैं १ मूल और कंद २ मूल स्कंध ३ मूल त्वचा ४ मूल शाखा ५ मूल | प्रवाल ६ मूल पत्र ७ मूल पुष्प ८ मूल फल और ९ मूल बीज ये नव भांगे मूल के साथ वैसे ही कंद के
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र
2880-82 वीसरा शतकका चौथा उद्देशा 4.84280