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________________ शब्दाथ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी * श्रमण भगवंत म. महावीर को न० नमस्कार कर ए. ऐसा 4. बोले क. कैसे भं० भगवन् ल. लवण ममुद्र चा० चतुर्दशी उ० अमावास्या पु० पूर्णिमा को अ अपेक्षा से व. वृद्धिपामे हा. हानिपा मे ज० जैसे जी. जीवा भिगम में ल• लवण समुद्र की व. वक्तव्यता ने० जानना जा. यावत् लो०१ सइ, नमसइत्ता एवं वयासी-कम्हाणं भंते ! लवणसमुद्दे चाउद्दसटुमुद्दिट्ट पुण्णमासिणीसु अइरेगं वइवा हायइवा ? जहा जीवाभिगमे लवण समुद्द वत्तव्यया नेय व्वा ॥ जाव लोयटिइ । लोयाणुभावे ॥१४॥ सेवं भंते भंतेत्ति जाव विहरइ ॥ किपत्र संयम व तप से आत्मा को भावते हवे विचरने लगे ॥१४॥ भगवान गौतम श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर पूछने लगे कि अहो भगवन् ! अन्य तिथी की अपेक्षामे चतुर्दशी अमावास्या व गमाको लवण मद में पानी क्यों अधिक बढ़ता है व क्षीण होता है ? अहो गौतम : लवण समुद्र की चारों दिशी में चार महा पानाल कलश एकर लक्ष योजन के ऊंडे कहे हैं. उनको तीन २१ कार है उन चारों कलश की बीच में एक २ हजार योजन के छोटे कलश की ९ लडों कही है. उन का भी तीन २ काण्ड हैं. उन के नीचे के काण्ड में वायु है, घोच के काण्ड में वाय और हवा है व उपर काण्ड में पानी है. नीचे के काण्ड का वायु गुंजायमान होने में सोलह हजार योजन की दगमाले पर दो कोश पानी चढता है इम से इन तिथियों में पानी प्रसरता है वगैरह आधिकार जीवाभिगम मूत्र से * प्रकाशक-सजावहादुर लाला मुखदेवमहायजी बालाप्रसादजी भावार्थ | *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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