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शब्दावला अ. अपयन काल के कितना भी हार मं मंडित ए. एक जीन प: आश्री जनधन्य अ
ye अंतर्मन र कर पूर्व काड दे० देशकणा णा विविध जीव १० पाश्री म मर्व काल ॥३॥
भः भगवान मानिनपत्र - अनगार श्रमण भ भगवान म महावीर को न नमस्कार कर ममयम न तप में अः अान्या को भा. भावन हव वि० विचरते हैं ॥५५॥ भं भगवान गो. गौतम म
अप्पमत्त संजयरमण भंते ! अप्पमत्त संजमे वट्टमाणम्स सध्यात्रियणं अप्पमत्तढाकालओ केवचिरं होइ ? गंडिया ! एग जीवं पडच्च जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडीदे सणा णाणाजीचे पडुच्च सव्वद ॥ १३ ॥ सेवं भंते, भंतेत्ति भयवं मंडियपुत्ते अणगारे समणं भगवं महावीरं बंदइ नमसइ, नमसइत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं
भावमाणे विहरइ ॥ १४ ॥ भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंमें रहनेवाला अप्रमत्त संयति सब काल आश्री कितने काल तक रहता है ? अहो मण्डितपुत्र ! एक जीर आश्री जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट देश ऊना पर्व कोड; क्यों कि अप्रमत्त अवस्था में रहनेवाला जीव है अंतर्मुहूर्त से पहिले काल नहीं करता है और आठ वर्ष कम कोड पूर्व सो केवल ज्ञान आश्री जानना.
यहूत जीव आश्री निरंतर सब काल जानना. क्योंकि अप्रमत्त संयति सदैव पाते हैं ॥ १३ ॥ अहो । ॐ भगवन् ! आप के वचन तथ्य हैं ऐमा कहकर श्री श्रमण भगान्त महावीर को वंदना नमस्कार कर मण्डित
पंचांग हिवार पण्णात्ति ( भगवती) मूत्र
तीसरा शनक का तीसरा उद्दशा
भावाथ
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