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शब्दार्थ |
सूत्र
4 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
पानी में उ० नीकालते खिः शीघ्र उ० उपर उ० आवे है ० हां उ० आये ए० ऐसे मं० मंडितपुत्र अ० अत्मा से संवृत अ० अनगार इ० ईर्ष्या समिति वाले जा० यावत् गुप्तब्रह्मचारी आ०उपयोग पूर्वक ग० जाते चिः खडा रहते नि० बैठते तु० सोते व० वस्त्र प० पात्र कं० कंवल पा० रजोहरण मे० ग्रहण करते नि० रखते जा० यावत् च चक्षु पक्ष निः निपात वे बेमात्रा सु० सूक्ष्म इ० ईर्ष्या पथिक [क्रिया क० करे सा० वह प० प्रथम समय में व० बंधी पु० स्पर्शी वि० दूसरा समय वे० वेदी त० अवत्ता संवुडस् अणगारस्स इरियासमियरस जाव बंभगुत्तयारिस्स आउत्तं गच्छ - माणस्स, चिट्ठमाणस्स निसियमाणस्स, तुयट्टमाणस्स, आउत्तं वत्थ पडिग्गह कंबल पायपुंछणं गेण्हमाणस्स निक्खेवमाणस्स जाव चक्खु म्ह निवायमवि बेमाया सुमा इरियावहिया किरिया कजइ, सा पढमसमय बद्धा पुट्ठा, बितिय समय वेइया, तइय समय निज्जरिया, सा बढा पुट्ठा उदीरिया वेदिया निजिण्णा सेयकाले अकम्मं( साफ करतो क्या वह नावा शीघ्र पानीपर आती है ? हां भगवन्! खाली नावा पानीपर आती है. वैसेही अहो मंडित पुत्र ! आत्मा को संवरने वाले, ईर्ष्यासमिति यावत् गुप्त ब्रह्मचर्य पालने वाले, यत्ना पूर्वक चलने वाले, खडे रहने वाले, बैठने वाले, सोने वाले, वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरण ग्रहण करने वालेड, रखने ईवाले अनगार को उन्मेष निमेष मात्र ईर्ष्या पथिक क्रिया लगती है. उसक्रिया का प्रथम समयमें बंध होता
*ॐ> <९३ तीसरा शतक का तीसरा उद्देशा
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