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शब्दार्थ तप्त अलोहे के कडे पे पडाला हुवा खि० शीघ्र वि. नाशपावे हं० हां विविनाश पावे ज• जैसे हः द्रह
पु० पूर्ण पु० पूर्ण प्रमाण वो० उछलता वो० उल्लास पामता स० भरा हुवा चि० होवे अ. अब के० कोई पुरुष तं० उम ह. द्रह में ए० एक वडा ना० नाव स० शतछिट्वाली ओ० रखे मं० मंडितपुत्र सा० ३००
असमारंभमाणे; आरंभ अवट्टमाणे, सारंभे अवमाणे, समारंभे अबमाणे बहणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं अदुक्खावणत्ताए, जाव अपरियावणत्ताए वदृइ, से जहा नामए केइपुरिसे सुक्कतणहत्थयं जायतेयंसि पक्खिवेजा, सेणूणं मंडियपुत्ता! से सुक्के तणहत्थए जायतेयंसि पक्खित्ते समाणे खिप्पामेव मसमसा विजइ ? हंता मसमसा विजइ ॥ सेजहा नामए केइपुरिसे तत्तंसि अयकवल्लसि उदयविंदु पक्खिवेजा ?
सेनणं मंडियपुत्ता ! से उदयबिन्दु तत्तंसि अयकवल्लंसि पक्खित्ते समाणे खिप्पामेव भावार्थव समारंभ नहीं करते हैं यावत् उन में नहीं परिणमते हैं. इस तरह आरंभ, सारंभ व समारंभ नहीं करने
वाला यावत् उस में नहीं प्रवर्तनेवाला पाण, भूत, जीव व सत्तों का दुःख यावत् परितापना नहीं करता है. ogo परंतु योग निरूंधन रूप शुक्ल ध्यान से सकल कर्म धंस रूप अंत क्रिया करता है. उस के उपर तीन दृष्टांत कहते हैं. १ जैसे सूका हुवा घास अग्नि में डालने से क्या भस्म होता है ? हां भगवन् ! वह भस्म होता है, अहो मण्डित पुत्र ! तप्त लोहे पर पानी का विन्दु पडने से क्या वह शीघ्र नष्ट होता है ? हां भग
(भगवती) सूत्र २ विवाह पण्णत्ति
४२११ तीसरा शतक का तीसरा उद्देशा g><-80