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शब्दार्थ
अनुवादक-यालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पुरुष सु० सुका तु० तृण कापूला जा. अग्नि में प० डाले हैं. वह मं० मंडितपुत्र सु०० शुष्क त तृणका पुला आ० अग्नि में प० डालते खि. शीघू म० जल जावे हं० हां म. जल जाब ज. जैसे के० कोई पुरुष त० तप्त अ० लोहेके गोलपे उ० पानी का विंदु १० डाले से वह मं० मंडितपुत्र उ० पानी का विन्दु त.
जीवेणं भंते! सयासमियं णो एयइ जाव णो तंतं भावं परिणमइ ? हंता मंडियपुत्ता ! जीवेणं सयासमियं जाव णो परिणमइ जावंचणं भंते ! से जीवे नो एयइ जाव नो तंतं भावं परिणमइ, तावंचणं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया भवइ ? हंता जाव भवइ ॥ से केणट्रेणं जाव भवइ ? मंडियपुत्ता ! जावंचणं च से जीवे सयासमियं णोएयइ जाव परिणमइ, तावंचणं से जीवे णो आरंभइ, णोसारंभइ, णोसमारंभइ,
णो आरंभेवटइ, णो सारंभेवटइ णो समारंभेवदृइ, अणारंभमाणे, असारंभमाणे, भगवन् : अयोगी जीव सदैव प्रमाण युक्त क्या नहीं चलते हैं यावत् उक्त भावों में नहीं परिणमते हैं ? हां मण्डित पुत्र ! वे अयोगी जीर नहीं चलते हैं यावत् पूर्वोक्त मावों में नहीं परिणमते हैं. अहो भगवन् ! जहांलग वे जीवों नहीं चलते हैं यावत नहीं परिणमते हैं वहांलग उन को क्या अंत क्रिया होती है ? हां मण्डित पुत्र ! उन का अंत क्रिया होती है. किस तरह उन को अंत क्रिया होती है ? अहो मण्डित पुत्र ! जहांलग वे जीव चलते नहीं हैं यावत् नहीं परिणमते हैं वहांलग वे आरंभ, सारंभ
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ