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________________ ब 22: . पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती स० समारंभ में वक्त आ० आरंभ करता मार मारंभ करता स० समारंभ करता था. आरंभ में मा० सारंभ में स. समारंभ में व. वर्तता व वहत पा. प्राण भूः भूत जी, जीव स सत्व क दुःख देने से सो० शोचकराने से जू० जूरणा कराने से ति० आक्रंद कराने से पि० मारने से प. परितापना उपजाने से व० वर्ते से वह ते. इसलिये मं० मंडित पुत्र ॥१ ॥ से. वह ज. जैसे के० कोई ७ रंभइ ; आरंभे वट्टइ, सारं भेवटइ, समारंभेवटइ; आरंभमाणे, सारंभमाणे, समारंभमाणे, आरंभेघटमाणे, सारंभेवमाणे, सामारंभेवमाणे, बहूणं पाणाणं, भूयाणं, जीवाणं, सत्ताणं दुक्खावणताए, सोयावणताए, जूरावणताए, तिप्पावणताए, पिटावणताए, परियावणताए वट्टइ से तेणट्टेणं मंडियपुत्ता ! एवं वुच्चइ, जावंचणं से जीवे सयासमियं एयइ जाव परिणमइ, तावंचणं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया न भवइ ॥ १० ॥ सदैव चलता है यावत् उन पूर्वोक्त भावों में परिणमता है वहां लग वह जीवों का आरंभ, सारंभ व समारंभ करता है, आरंभ, सारंभ व समारंभ में वर्तता है. इस तरह आरंभ, सारंभ व समारंभ करता हुवाई यावत् उन में प्रवर्तता हुवा प्राण, भूत, जीव व सत्वोंको दुःख, शोक, झुरणा, वेदना, पिटना व परितापना करने में प्रवर्तता है. इस से अहो मण्डित पुत्र : ऐसा कहा गया है कि सयोगी जीव जहां लग चलता है। यावत् उन पूर्वोक्त भावों में परिणमता है वहांलग उन को अंत क्रिया नहीं होती है ॥ १० ॥ अहो । 00 तासग शतक का तीसरा उद्दशा 088080/ भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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