________________
शब्दार्थ कि० क्रिया ॥ ७ ॥ अ० है भं भगवन् म० श्रमण नि० निथ को कि क्रिया क० करे हं० हां अ० १
है क. कैसे भं. भगवन् स. श्रमण नि. निग्रंथ कि क्रिया क. करे मं० मंडितपुत्र म. प्रमाद है प्रत्यायक जो० योग निमित्त ॥ ८ ॥ जी जीव भं० भगवन् स. सदैव ए. कम्पे वे० विशष कम्पे च. चले फं० थोडापे घ• सबदिशा में चले खु. क्षोभपामें उ० उदीरे तं० उस उस भाव को ५० परिण
पुदि किरिया पच्छा वेयणा णो पुचि वेयणा पच्छाकिरिया ॥७॥ अत्थिणं भंते समणाणं । १ निग्गंथाणं किरिया कजइ ? हंता अत्थि. कहिणं भंते ! समणाणं निग्गंथाणं किरिया क
जइ ? मंडियपुत्ता ! पमाय पच्चया, जोग निमित्तंच. एवं खलु समणाणं निग्गंथाणं किरिया
कजइ ॥८॥जीवेणं भंते सयासमियं एयइ,वेयइ,चलइ,फंदइ, घट्टइ,खुब्भेइ, उदीरेइ, तंतं
पीछे क्रिया होती है ? अहो मण्डितपुत्र ! पहिले कर्मबंध के कारण भूत क्रिया होती है फीर उन का भावार्थ
उदय होने से वेदना होती है. इस से पहिले क्रिया और पीछे वेदना होती है; परंतु पहिले वेदना और पीछे क्रिया नहीं है ॥ ७॥ अहो भगवन् ! श्रमण निर्ग्रन्थ क्या क्रिया करते हैं ? हां मण्डित पुत्र : श्रमण निर्ग्रन्थ क्रिया करते हैं. अहो भगवन् ! श्रमण निग्रन्थ कैसे क्रिया करते हैं ? अहो मण्डित पुत्र! प्रमाद प्रत्ययिक और योग निमित्त श्रमण निग्रंथ क्रिया करते हैं ॥ ८॥ अहो भगवन् ! सबोगी जीव सदैव प्रमाण युक्त क्या चले, विशेष चले, एक स्थान से अन्य स्थान जावे, स्पर्श करे, क्षुब्ध होवे
488 पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती ) मूत्र
तीसरा शतकका तीसरा उद्देशा8058880
monion.
| ।