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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
4 अनुवादक बालब्रह्मचारी माने श्री अमोलक ऋषिजी
॥ ४ ॥ पा० पारितापनिकी दु० दोप्रकार की स० अपने दस्त से प० दुसरे के हस्त से ॥ ५ ॥ ० प्रणातिपातिकी क्रिया दु० दोमकार की स० स्वहस्त प्राणातिपात क्रिया १० परहस्त प्राणातिपात क्रिया) ॥ ६ ॥ पु० पहिली भं० भगवन् किं० क्रिया प० पीछे वे० वेदना पु० पहिली वे० वेदना प० पीछे ( कि० क्रिया मं० मंडित पुत्र पु० पहिली क्रिया प० पीछे मं० वेदना णो० नहीं पु० पहिली वेदना प० पीछे बिहा प० ? मंडियपुत्ता ! दुबिहा प० तंजहा सहस्थ पारियात्रणियाय, परहत्थ पारियावणियाय ॥ ५ ॥ पाणाइवाय किरियाणं भंते ! पुच्छा मंडियपुत्ता ! दुविहा प० तं जहा सहत्थ पाणाइवायाकिरिया परहत्थ पाणाइवाय किरियाय ॥ ६ ॥ पुत्रि भंते! किरिया पच्छा वेयणा पुत्रि वेयणा पच्छा किरिया ? मंडियपुत्ता !
{ प्रद्वेषिकी ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! परितापनिकी क्रिया के कितने भेद ? अहो मण्डित पुत्र ! परितापाने की क्रिया के दो भेद १ स्वस्त से स्वतः को तथा अन्य को परितापना उत्पन्न करे और २ पर हस्त से { स्वतः को तथा अन्य को परितापना उत्पन्न करे || ५ || अहो भगवन् ! प्राणातिपात्रिकी क्रिया के कितने (भेद ? प्राणातिपातिकी क्रिया के दो भेद? स्वहस्त से स्वतः की तथा अन्य की बात करे सो और २ पर ( हस्त से स्वतः की तथा अन्य की घात करे ॥ ६ ॥ क्रिया मे वेदना होती है इस से ( पूछते हैं. अहो भगवन् ! पहिले क्रिया और पीछ वेदना होती है अथवा पहिले
वेदना का प्रश्न होती है ओर
वेदना
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
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