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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
१० अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भद्रिक जा० यावत् प० पर्युपासना करते ए० ऐसे व० बोले क० कितनी मं० भगवन् कि० क्रिया ५० प्ररूपी मं० मंडितपुत्र पं० पांच क्रिया प० प्ररूपी का कायिकी अ० अधिकरणि की पा० प्रद्वेषिकी पा० पारितापनिकी पा० प्राणातिपात क्रिया || १ || का० कायिकी भं० भगवन् कि० क्रिया क० कितने
पज्जुवासमाणे एवं वयासी कइणं भंते किरियाओ पण्णत्ताओ ? मंडियपुत्ता ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ तंजहा काइया, अहिगरणिया, पाओसिया, पारियावणिया, पाणाइवायकिरिया || १ || काइयाणं भंते ! किरिया कइविहा पण्णत्ता ? मंडियपुत्ता !
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
था. वहां श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे, परिषदा वंदन करने को आई, धर्मोपदेश सुनकर पीछी ( गई. उम समय में प्रकृति भद्रिक यात्र विनीत श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी का मंडितपुत्र नामक शिष्य पर्युपासना | करते ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! क्रियाओं कितनी कही हैं ? अहो मंडित पुत्र ! कर्म के हेतु रूप क्रिया के (पांच भेद कहे हैं. १ शरीर से होवे सो कायिकी क्रिया २ खड्ग शस्त्रादि अधिकरण से होवे सो अ [धिकरणिकी ३ मत्सरभाव से होवे सो प्रद्वेषिकी ४ अन्य को परितापना ( दुःख ) देने से होवे सो परि{ तापनिकी और ५ प्राणों की बात करने से होवे सो प्राणातिपातिकी क्रिया ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! कायिकी क्रिया के कितने भेद कहे हैं ? कायिकी क्रिया के दो भेद १ अनुपरत कार्यि की क्रिया-प्रत्याख्यान कर के
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