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शब्दाथ
88 अनुवादक-यालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋार्पजी
ऊर्ध्व उ० जाये जा. यावत सो० धर्म देवले. गो. गौतम दे देव अ० तुरत का उत्पन्न च० नमर
अमरकुमारा देवा उढ़ उप्पयंति जाव लोहम्मे कप्पे ? गोयमा ! तेसिणं देवाणं अहणोववण्णगाण वा, चरिम सवाणवा इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जइ अहो णं अम्हेहिं दिव्वा दविट्ठीलडा पना अभिसमण्णागया जारिसियाणं अम्हहिं दिव्या देविड्डी जाव अभिसमण्णागया तारिलिपाणं सकेणं देविंदेणं देवरण्णा दिव्या देविट्टी जाव अभिसमण्णागया जारिसियाणं सकेणं देविदेणं जाव अभिसमण्णागया तारिसियाणं अम्हेहिंवि जाव अभिसमण्णागया तं गच्छामोणं सक्करस दविंदस्स देवरणो अतियं पाउब्भशमो पासामो ताव सकस देविंदरस देवरण्णो दिव्वं देबिड्डी जाव अभिसमण्णा
गयं पासतु ताव अम्हहिवि सझे दविंद देवराया दिव्यं देविट्टि जाव अभिसमण्णागयं आगे भव प्रत्यायिक वैर मे मौन देवलोक में जाने का कहा अब दसरा कारन मे मोधर्म देवलोक में जाते हैं मो बताते हैं. अमो भगवन : किम कारन से असर कमार देव मौधर्म देवलोक में गये और जावेंगे ? अहो गौतम : तुर्त के जन्मे हुवे को अपना चरण काल पान आया हुवा होवे वैसे को ऐमा अध्यवमाय हाये कि मुझे ऐसी दीव्य देवदि यात प्राप्त हुई है मनख हुई है. जैसी ऋद्धि मझ है वैसी ही ऋद्धि शक्र देवेन्द्र को है और जैनी ऋद्धि हाक देवेन्द्र को है वैसी ही ऋद्धि मुझे है इम से शकेन्द्र की
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्यालाममादजी *
भावार्थ