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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
२० अनुवादक लिब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
ध्याते हो ॥ ४१ ॥ पूर्ववत् ॥ ४२ ॥ किं० किस प० प्रयोजन से भ० भगवन् अ० असुर कुमार देव उ० पारसोवण देवे एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया मए समणं भगवं महावीरं नीसाए स देविंदे देवराया सयमेव अच्चासाइए. तएणं तेणं परिकुविएणं समाणेणं ममं वहाए वजे निसिट्टे, तं भद्दणं भवतु देवाणुप्पिया समणस्स भगवओ महावीरस्स जस्संमि पभावेण अकिट्ठे अव्वाहए अपरिताविए इह मागए, इह समोसढे, इह संपत्ते, इहेब अज्ज उवसंपजित्ताणं विहरामि तं गच्छामोणं देवाणुप्पिया समणं भगवं महावीरं वंदामो नमसामो जाव पज्जुवासामो तिक्कद्दु चउसट्ठीए सामाणिय साहस्सीहिं जाव सव्धिड्डीए जाव जेणेव असोगवर पायवे जेणेव मम अंतिए तेलेव उवागच्छइ उवागच्छइत्ता. देवों को ऐसा कहा अहो देवानुप्रिय ! मैंने श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी की नेश्राय से शक्र देवेद्र को भ्रष्ट करने की इच्छा की इससे उसने क्रोधित होकर मेरा वध करने को वज्र छोडा. अहो देवानुप्रिय ! उन महा वीर स्वामी का कल्याण होवो कि जिनके प्रभाव से मैं क्रिष्टता, बाधा, परितापना रहित यहांपर आया हुवा हूं, यहांपर समोमर्या हूं यावत् यहां पर प्रशान्त बना हुवा विचरता हूं. इस से अपन श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीकी पास जावे और उन को वंदना नमस्कार करे यावत् उनकी पर्युपासना करे. इस से चौसठ हजार सामानिक यावत् सब ऋद्धि सहित सुंसुमार नगर के अशोक वन खंड में अ
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी जालाप्रसादजी #
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