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शब्दार्थहणाया म० मनसंकल्प चिं० चिंताशोक सा• सागर में सं० प्रविष्ट क० करतल में प० रहा हुवा मु०१।
मुख अ० आर्तध्यान उ० ध्याते भू० भमि में दि०दृष्टि झि० ध्यानकरे ॥४०॥ त० तब तं० उन च• चमर अ० असुरेंद्र को सासामानिक देव ओव्हणाया म०मनसंकल्प जायावत् झि०ध्यानकरते पा०देखकर क.
५१३ करतल जा० यावत् व० बोले कि० क्या दे० देवानुप्रिय उ० हणाया म० मनसंकल्प जा० यावत् शि०
सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि उवहयमणसंकप्पे चिंतासोयसागरसंपविढे करयल पल्हत्थमुहे अदृज्झाणोवगए, भूमिगयदिट्ठीए झियाइ ॥ ४० ॥ तएणं तं चमरं असुरिंदं असुररायं सामाणियपरिसोववण्णया देवा ओहयमणसंकप्पं जाव झियाइमाणं पासइ पासइत्ता करयल जाव एवं वयासी किण्हं देवाणुप्पिया उवहयमणसं.
कप्पा जाव झियायह ॥ ४१ ॥ तएणं से चमरे असुरिंदे असुरराया ते सामाणियअसुरेंद्र वजू भयसे मुक्त हुवा, और शकेंद्र देवेंद्र से अपमान कराया हुवा, चमर चंचा राज्यधानी में सुधर्मा सभा में चमर नामक सिंहासन पर बैठा हुवा व मन का अभिमान हणाने से शोक सागर में डुबा हुवा age गंडस्थलपर हथेली रखकर व भूमि पर दृष्टि रखकर आर्तध्यान करने लगा ॥४०॥ तब चमर असुरेंद्र की परिषदा के सामानिक देवोंते चपरेन्द्रको ऐमा आर्तध्यान करता हुवा देखकर पूछा कि अहो देवानुप्रिय !* आप क्यों एसा आतध्यान करते हो? ॥४१॥उस समय में चमर नामक अमरेंद्रने उन सामानिक परिपदा के
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
<१.१> <dog तीसरा शतक का दूसरा उद्देशा
भावार्थ
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