________________
शब्दार्थ |
सूत्र |
भावार्थ
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारिमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
०
उ० जावे ए० एक स० समय में तं० उस को व० वज्र दो० दो से च० चमर ति तीन से न० विशेष वि० विशेषाधिक का कहना ॥ ३७ ॥ स० शक्र दे० देवेंद्र का उ० नीचे आनेका उ० उपर { जाने का का० काल क० कितना क० किससे अ० अल्प गो० गौतम स० सर्व थोडा स० शक्र दे देवेंद्र उपes एक्hi समएणं तं वज्जे दोहिं, तं चमरे तिहिं, वजं जहा सक्करस तहेव, नवरं विसेसाहियं कायव्वं ॥ ३७ ॥ सक्करसणं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो उवयणकालस्सय उप्पयणकालस्सय कयरे कयरेहिंतो अप्पेवा बहुएवा तुल्लेवा विसेसाहिएवा ? कल्पना से तीसरा भाग कम एक योजन अधोलोक में जावे. उक्त आठ भाग में से एक गाऊ का तीन भाग करे ऐसे दो भाग अधिक तिच्छलोक में जाने से विशेषाधिक, ऊर्ध्व गति में एक योजन पूर्ण जावे इस से विशेषाधिक. यहां कोई प्रश्न करे कि सामान्य से विशेषाधिकपना कहा है तब उस के नियमित भाग कैसे हो सकते हैं ? एक समय में जितना क्षेत्र चमरेन्द्र अधो गति में उल्लंघता है उतना क्षेत्र शक्रेन्द्र दो समय में उल्लंघता है और वज्र तीन समय में उल्लंघता है. इस तरह शक्रेन्द्र की अधोगति की अपेक्षा से वज्र के तीन भांग कम अधोगति हुई. शक्र का नीचे जानेका काल और वज्र का ऊंचा जाने का काल बराबर है इस से जाना जाता है कि जितने समय में शक्रेन्द्र नीचे जाता है उतने समय में वज्र ऊंचे { जाता है. ऊर्ध्व व अधोगति के बीच में तिच्छी गति है. इन दोनों के बीच में तिच्छगति रही हुई है. इन दोनों के बीच में एक गाऊ के तीन भाग करे ऐसे दश भागवाला तिच्छगिति का प्रमाण कहा ||३७|| |
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
५१०