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शब्दार्थ
2007
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भावार्थ
पंचमांग हिवाव पण्णात्ति ( भगवती) सूत्र
अधो ति तिर्छा ग०. गति विषय का कितना का किस से अ० अल्प व० बहुत तु. तुल्य वि. विशेषाधिक गो. गौतम स० सर्व से थोडा खे० क्षेत्र च० चमर अ० असुरेंद्र उ० ऊर्च उ. जावे ए० एक समय में ति० तिर्छा सं० संख्यातवा भाग में अ० अधो सं० संख्यातवा भाग में स० शक्र दे० देवेन्द्र १००
रियंच गइविसयस्स कयरे कयरेहितो अप्पेवा, बहुएवा तुल्लेवा, विसेसाहिएवा ? है गोयमा ! सव्वत्थोवं खेत्तं चमरे असुरिंदे असुरराया उड्डे उप्पयइ एकेणं समएणं,
तिरियं संखेजेभागे गच्छइ, अहे संखेजे भागे गच्छइ । सक्के देविंद देवराया उट्ठे भाग ऊना तीन गाउं, इस प्रकार एकेक गाउ के तीन भाग करने से एक योजन के बारह और दो योजना के चौवीस भाग होते हैं इस से यहां विचारते हैं तीन भाग कम तीन गा तब आठ भाग रहे इतना एक समय में ऊंचे जावे, उस से तिर्छा उक्त आठ भाग से दुगुने करे इतना क्षेत्र अधिक जावे इतना तिर्छा गति का विषय शीघ्र कहा है. उक्त दो विभाग कम छ गाऊ है उस में एक विभाग कम तीन गाऊ मीलाने से अर्थात् दो योजन पूर्ण होवे उतना अधिक अधो लोक में जावे. अहो भगवन् ! वज़ काoge ऊर्ध, अधो व तिर्यक् गति में ज्यादा, कमी, बराबर किस प्रकार कहा है ? अहो गौतम ! जैसे शकेन्द्र है। का कहा वैसे ही वज़ का जानना. वज़ सब से थोडा अधो गति में जावे, क्यों कि अधो गति में जाने में उन की गति की मंदता है. तिछा विशेषाधिक जावे और ऊर्च गति में विशेषाधिक जावे. यहां
2208:00 तीसरा शतक का दूसरा उद्दशा-483