________________
५०७
शब्दार्थ संख्यात गुणा ए० ऐसे ॥ ३५ ॥ स० शक्र दे० देवेंद्र का उ० अर्ध अ० अधो नि० तिर्छा ग. गति ।
०/विषय क कितना क किससे अ० अल्प व०बहुत तुतुल्य वि विशेषाधिक गो गौतम सासर्व से थोडा खे०१० क्षेत्र स० शक्र दे० देवेन्द्र अ० अधो उ० जावे एक एक समय में ति• तिर्छा सं० संख्यातवा भागमें ग०१४
देविदेणं देवरण्णो चमरे असुरिंदे असुरराया नो संचाएइ साहत्थिं गेण्हित्तए ॥ ३५॥ सक्कस्सणं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो उड़े अहेतिरियंच गइविसयवस्स कयरे कयरे. हिंतो अप्पेवा बहुएवा तुल्लेवा विसेसाहिएवा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे खेत्तं सक्के दे. विदे देवराया अहे उवयइ, एक्केणं समएणं तिरियं संखेजेभागे गच्छइ, उर्दु संखेचमर अमुरेंद्र को नीचे आने में सब से थोडा काल लगता है उस से ऊर्ध्व जाने में संख्यात गुना काल लगता है. इस से अहो गौतम ! शकेन्द्र असुरेन्द्र को हाथ से पकडने को समर्थ नहीं है ॥ ३५ ॥ अब व शकेंद्र, चमरेंद्र व वज्र इन की गति का अल्पाबहुत्व करते हैं. अहो भगवन् ! शक्र देवेंद्र का ऊर्च, अधो व तिर्यक् गति विषय में से कौन किस से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है! अहो गौतम !
सब से थोडा क्षेत्र शक देवेंद्र नीचे उतरता है, इस से संख्यात भाग अधिक तिछी दिशा के क्षेत्रका आक्र-1 ofमण करता है उस से फर्व दिशा का क्षेत्र संख्यात भाग अधिक जाता है. जैसे शक्र नामक देवेन्द्र एक
समय में एक योजन नीचे आवे, उस के दो भाग करके उस में का एक भाग उक्त योजन में मीलाने से
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भग तो) सूत्र 8888
तीसरा शतकका दूसरा उद्देशा
भावार्थ
-