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शब्दार्थ वि० वन दो दो से नं. जिस को व० वज़ दो० दो से ते० उसको च०चमर ति तीन से स०सर्व से थोडा
स. शक्र दे० देवेन्द्र का उ० अर्ध लोक कं० कंड अ० अधोलोक क०कंड सं संख्यात गुणा जा०जितना खि० क्षेत्र च० चमर अ० अधो उ० जावे ए० एक समय में तं. उस को सशक दो० दो से १० वजू तिथ्वीन से ससर्वसे थोडा च चमर अ.असुरेंद्र का अ० अधोलोक कं० कंड उ ऊर्ध्व लोक का कंड सं०
तं वजे दोहिं, तं चमरे तिहिं ॥ सव्वत्थोवे सकारस देविंदस्स देवरण्णो उड्डलोयकंडए अहेलोय कंडए संखेजगुणे जावइयंखेत्तं चमरे असुरिंदे असुरराया अहे उवयइ । एक्केणं समएणं, तं सक्के दोहिं, तं वजे तिहिं, ॥ सव्वत्थोवे चमरस्स असुरिंदस्स !
असुररण्णो अहेलोयकंडए, उड्डलोयकंडए संखेजगुणे, एवं खलु गोयमा ! सक्केणं दो समय में जाता है और चमरेन्द्र तीन समय में जाता है, शक्र देवेन्द्रको उपर जाने में सब से थोडा काल लगता है जप्त से अधो लोक में आने में संख्यात गुना ( द्विगुना.) काल लगता है. * एक समय में असुरेंद्र जितना नीचे उतरता है उतना शकेंद्र दो समय में उतरता है और वज़ तीन समय में उतरता है
* यहां पर द्विगुना काल लेनेका मतलब यह है कि शकेंद्रको ऊंचा जानेका व चमरेंद्र को नीचा आने से जई का काल में दोनों बराबर हैं. एक समय में चमरेंद्र जितना नीचे जाता है उतनाही क्षेत्र नीचे आने में २१ शकेंद्र को दो समय लगते हैं.
202 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *