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________________ शब्दाथ जी gop> अनुवादक-बालब्रह्मचारी मनि श्री अमोलक असंख्यात दी द्वीप समुद्र म० मध्य से जा यावत् जे: जहां अशोक पा० वृक्ष ममेरी अंक पास ने तहां उ० आकर म. मुझेच. चार अंगुल अ. अप्राप्त च. वत्र प. महरन करे म० मष्टिकेदात से के ----- ॥त. तब मे वह म. शक दे० देवेन्द्र व. चत्र को प० महरन कर ५० मुशात तानवक्त पा० आदानप० प्रदक्षिणा का करके नः नमस्कार कर ए० पेमा व बाल मं० भगवन अमैं तु. तुमारी नी. नेश्राय मे च चमर अ. अमरेंद्र स० स्वयं अ० भ्रष्ट करने को न वीहिं अणगच्छमाणे तिरिय ममखजाणं दीवसमदाणं मम्झं मांझणं जाव जेणव असोगवरपायवे जेणेव मंम अंतिए तेणेव उवागच्छः उवागच्छइत्ता, ममंचणं चउरंगुलमसंपत्तं वजं पडिसाग्इ अगियाइमे गोयमा ! मुविवाएणं के सग्गे वीइत्था ॥ ३२ ॥ तएणं से सके देविंदे देवगया वजं पडिसाहरित्ता, ममं तिक्वत्तो आया हिणं पयाहिणं करेट करइत्ता वदा नमैमा नमंसात्ता एवं बयासी एवं खलभते ! रस्ते को अनमरता हुवा अमंग्यान द्वीप ममुद्र उल्लंय कर जम्नदीप के भरन क्षेत्र में संप्रमार नामक गर के अशोक वनखण्ट के अशोक वृक्ष नीचे मग ममीप आया. और मेरे में चार अंगल दर रहने पत्र पीछा खींच लिया. वज़ खीचने के लिये जो मुष्टिबंध की. उस के वाय में मेरे के गाय चले ॥३॥ वज वींचे पीछे मुड्ने नीन आदान प्रदक्षिणाकर वंदना नमस्कार कर ऐमा वोल: अहो भगवन : आप * प्रकाशक राजावहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वारापनाद जी * भावार्थ -
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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