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शब्दार्थ
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लोक ण नहीं अ. अन्यथा अ० अरिहंत अझस्थ अग्नि अ० अनगार भामविनामा णिश्राय में उ० कर्य उ: उडे जायात मी माधवनांक : करमा महा दायत नथारूप अ. अरिहन भ. भगवन्त अ० अनगाकी अ. आशातनाकरे।।३५॥ तिः ऐसा करके ओर अवधिज्ञान को प्रयुंजकर यमुढो ओ अवधि ज्ञान में आदेखकर हाहाहा अः अहो दहणाया अौं अनि एसा करके ना उस उ• उष्टजा यावत दिदीव्य देदेकानिक यन्त्र की वी ने अपीछे जाना निलनिछी अ०
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- पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती) सूत्र -- 980
अरिहंतचेइबाणिवा, अणगारेवा भावियप्पाणो णिस्माए उई उप्पइत्ता जाव सोहम्म कप्पे तं महादक्खं खलु तहारूवाणं अरहताणं भावंताणं अणगाराणय अच्चासायणयाए ॥ ३१ ॥ त्तिकटु, ओहिं पउंजइ, पउंजइत्ता ममं ओहिणा आभोएइ२ ता, हाहा अहो हतो अहंमसि तिकटु ताए उकिट्टाए जाव दिव्याए देव गईए वजस्स
तीसरा शतक का दूसरा उद्दशा 8 <PRPB
भावार्थ -
आरे का विषय नहीं है. अरिन, अरिहंत चैत्य सो छमस्थ, अनगार और भवितात्पा की नेश्राय विना
ऊंचे उड़ने को यावत् सौधर्म देवलोक में आने को समर्थ नहीं है. इस से अरिहंत भगवंत यावत् अनगार Ele को आसातना से महा दुःख होगा ॥ ३१ ॥ऐसा करके आधि ज्ञान प्रयुंजा. (लगाया) और अवधि
ज्ञान से मुझे देखकर हा हा अरे अरे ऐमा खेद करके उस उत्कृष्ट यावत देव की दीव्य गति से पत्र के