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शम्दाथ करतात. ट ट अवाज करता उ० उल्का सहस्र मु. मूकता हुवा जा० ज्वाला सहस्र मु. मूकता ई.
अंगारे स० शत सहस्त्र पविखरता फु० अग्नि कण जा ज्वाला मा० माल्य स० सहस्र च. चक्षु वि. विक्षेप दृष्टि का प० प्रतिघात प० करता० अग्नि व बहत ते. तेज दि० देदीप्यमान वे. वेगवन्त फु० फला हुवा किं० किंशुक समान मा महाभयंकर च० चमर अ० असुरेंद्र का ३० वध केलिये व. वजू नि नीकाला ॥ ५९॥ त तब च. चमर अः असुरेंद्र नं. उस ज. जलता जा. यावत् भ. भयंकर
विणिं मुयमाणं २ जाला सहस्साई मयमाणं इंगाल सय सहस्साई पविक्खिरमाणं, पविक्खिरमाणं, फुलिंग जाला माला सहस्सेहिं चक्खु विक्खेवदिद्विषडिघायं वि पकरे माणे हुयबहुयतिरगतेयदिप्पंत, नइणवेगं, फुल्लींक सुयसमाणं महब्भयं भयंकर चमरस्स असुरिंदस्स असुररणो वहाए वजं निसिरइ, ॥ २९ ॥ तएणं से चमरे
असुरिंदे असुरराया तं जलं जाव भयंकर वजमभिमुहं आवयमाणं पासइ, पासइत्ता भावार्थ
अग्नि समान जलता हुआ, फुर फट सन्द करदाया, और वात्रट करता हुवा सहस्र वित समान
भलभलाट करता हुवा, ज्याला को छोडता हुवा, हजारों अंगार की वर्षा वर्षाता हुया. बहुत प्रकाश करता "हुना, आदिले आधिक तेजपारा, किंशुक कमा ममानफुटा हवा, ओर महाभय उत्पन्न करता हुवा ऐमा भयं
कर बज चया अमरेन्द्र के वध के लिये छोटा !!२१॥ फीर ऐमा जलता हुवा यावत् महाभय करने
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहाय जी बालासमादी *