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________________ शब्दार्थ । सूत्र भावार्थ oye अ० अमनाम अ नहीं सती फ० कठोर गि० भाषा मो० रख जा० यावत् मि देदीप्यमान तिर तीनरेखा रूप भि० भृकुटी ( चमर अ० असुरेंद्र को एक ऐसा बोले च चमर अमुरेंद्र हो० हीन पु० पुन्य चतुर्दशीचा अ आज न० नहीं भ० त्ति ऐसा करके सी० सिंहासन बैठे हवे व पव्ग्रहकर ॐ पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र मृतकर निः अवधारकर आ० आसु कपाल में मा चढाकर च अातिका पत्र प्रार्थित जा० यात्रत ना० नहीं ते तुझे सुसुख अ० है उस को ज जलता फुफुट फुट शब्द से सके देविंदे देवराया तं आणि जाव अमणामं अस्सुवपुवं फरुवं गिर सोचा निसम्म आमुरुते जाव मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निलांडे साहद्दु चमरं असुरिंदं असुररायं एवं बयासी हं भो चमरा अमुरिंदा असुरराया अप्पत्थियपत्थिया जाव हीणपुण्णचाउदसा ! अज्ज न भवसि नाहि ते सहमत्थि त्तिक तत्थेव सीहासणवरगए वज्रं परासुलह परामुसइत्ता, तं जलंतं, फुडंतं तथतडत उक्कासहरसाई यावत् अमनोज्ञ, पहिले कदापि नहीं सुती वैसी कठोर भाषा सुनकर शकेन्द्र कोधित हुवा, और दांत पीसता हुवा भृकुटी चाकर चमर नामक असुरेन्द्र असुर राजा को ऐसा कहा अरे अमुरेन्द्र, असुर का ( राजा चमर ! तू अप्रावि की वाना करनेवाला यावत् हीन पुष्पचतुर्दशी में उत्पन्न होनेवाला है. आज तुझे सुख नहीं होगा. ऐसा कहकर सिंहासन पर बैठे हुवे शक्रदेवेन्द्र देवराजाने वज्ञ उठाया उठाकर ॐ तीसरा शतक का दूसरा उद्देशा 20
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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