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शब्दाथ
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१.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 87
आत्मरक्षक देव सा० सहसक कहाँ ता. उन की अ अनेक अ० अप्परा को कोडी अ० आज ह. हनता हूं म०मन्थन करताहूं व०वधकरताह अ० आज ममुझे अ० अवश अअप्सरा व० वशसे उनमस्कार करो ति. ऐसा करके तं. उन को अ० अनिष्ट अ. अकान्त अ. अप्रिय अअशुभ अ० अमनोज्ञ अ० अमनाम फ कठोर गि० भाषा नि कही ॥२८॥ त० तब स०शक दे देवेन्द्र तं० उस अ० अनिष्ट जायावत
चउरासीइ सामाणिय साहस्सीओ, जाव कहिणं ताओ चत्तारिचउरासीओ आयरक्ख
देवसाहस्सीओ, कहिणं ताओ अणेगाओ अच्छराकोडीओ? अज हणामि, अज्ज महेमि, ___ अजवहेमि, अजममं अवसाओ अच्छराओ वसमुत्रणमंतु त्तिकटु, तं आणिटुं, अकं__तं, आप्पियं, असुभं, अमणुण्णं, अमणाम, फरुसंगिरं निसिरइ ॥ २८ ॥ तएणं
* प्रकाशक-राजबहादुर लाला सुखदवसहायनी ज्वालाप्रमादजी*
भावार्थ
मारा और बडे बडे शब्द मे बोली लगा अरे शक देवेन्द्र देवराजा कहां हैं? उसके चौरामी हजार मामानिक यावत् तीन लाख छत्तीन हजार आत्म रक्षक देव और अनेक कोट अप्परा का परिवार कहां है ? आज मैं उन को मानमत्र का मैं बध कालंगा, आज मैं दधिमत्रान मन्यन कांगा, आजदिन तक त मरे वश में नहीं था भादायों माहित शहर मझे नमस्कार कगे ऐमा अनिट्ट, अक्रान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ, अमणाय गावत कठोर वचन निकालने लगा. ॥२८॥ उस समय में ऐसी अनिष्ट