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शब्दार्थ यावदान नीली राज्यात वीडीययकीय मध्य उदंचना ने जहां मोमीधर्म देवलोक मागाधर्म
बर्दिशक विमान : जा. सुधीसभा ते नांउ आकर एक पांव १० पमवर वेदिकापे का
एः एक पांच मःममा सय मे क क परिघ रत्नमें म० बर्ड स शब्द से नि. तीन वक्त ई० कमाड को आताडकर ए. ऐलेव बोले क. कहां मा शक दे, देवेन्द्र क. कहां ता: उन के च० चौरामी मा नामानिक मा. सहस्त्र जा. यावन कः कहां च चार च० चौरामी आ. विउब्भाएमाणे, ताए उकिटाए जात्र तिरियसंखजाणं दीवसमदाणं मझमझेणं बीईवयमाणे २ जेणेव सोहम्मे कप्पे जेणे व लोहम्मवडिसए विमाणे, जेणेव सभासुहम्मा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता एगं पायं पउमवर वेइयाए करेइ, एगं पायं सभाए सुहम्माए करेइ, फलिहरथणेणं महया महया सद्देणं तिक्खुत्तो इंदकीलं आ
उडेइ, आउंडेइत्ता एवणी ननियां भो । सके देविंद देवराया, कहिणं ताओ भावाथको आकाश में उछालता हुआ, और इस प्रकार अन्य जनक ५ ७.५५ प
सदाव्य। गतिसे तिच्छी लोक के असंख्यात द्वीप समद्र के मध्य से नीकलता हुआ सौधर्म देवलोक में सौधर्म वार्ड 100
सग विमान में सुधर्मा सभा की पास आया. वहां आकर सुधर्मा सभा की बाहिर ५ मवर येदिका पर एक पांच 1 रखा और एक पांव सुधर्मा सभा में रखा. और पवित्र रत्न नामक आयुध से सुधर्मा सभा के द्वार को
809409 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
800तीसग शतक का दूसरा उदशा-82